सुरक्षा नीति में भारत के बदलते तेवर

इस आलेख का मंतव्य भारत की सुरक्षा नीति और तैयारी से पाठकों को अवगत कराना है। मई 1998 में पोखरण (द्वितीय) के परमाणु विस्फोट के सफल परीक्षण के पश्चात शांतिप्रिय भारत ने एकतरफा घोषणा की थी कि युद्ध की स्थिति में वह परमाणु हथियारों का उपयोग करने में अपनी ओर से कभी पहल नहीं करेगा, साथ ही दुनिया को यह भी विश्वास दिलाया था कि उसके परमाणु हथियार केवल स्वयं उसकी रक्षा के लिए हैं, किसी पर युद्ध थोपने या प्रतिशोध लेने के लिए नहीं है।
 
परमाणु हथियार भारत के लिए एक विश्वसनीय सुरक्षा एवं प्रतिरोधक क्षमता का हिस्सा मात्र हैं। अपनी इस नीति पर चलते हुए ही कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ से हुई जान-माल की हानि उठाने के पश्चात भी भारत ने इन परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया। 
 
यद्यपि चीन और पाकिस्तान ने भी इसी तरह का संयम बरतने की घोषणा की है किंतु ये देश निरंतर अपनी परमाणु क्षमता में वृद्धि करते जा रहे हैं। चूंकि चीन और पाकिस्तान के वादों पर भारत के सामने विश्वास करने की कोई वजह नहीं है इसलिए भारत सरकार के सामने शायद अनेक ऐसे अवसर आए होंगे, जब भारतीय रक्षा विशेषज्ञों ने भारत सरकार को अपनी 'प्रथम उपयोग न करने वाली नीति' पर पुनर्विचार की सलाह दी होगी। 
 
इस बात का चौंकाने वाला खुलासा हाल ही में परमाणु नीति पर वॉशिंगटन में हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन में एमआईटी के प्रोफेसर विपिन नारंग ने किया। उनके अनुसार भारत यह कभी नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान उसके किसी भी शहर पर पहले परमाणु हमला करे और नुकसान उठाने के बाद भारत उसका जवाब दे। भारत की रणनीति यही होगी कि यदि उसे पाकिस्तान की ओर से किसी भी प्रकार के आक्रमण की खुफिया भनक मिलती है तो वह बिना प्रतीक्षा किए पाकिस्तान की सारी परमाणु क्षमता को नेस्तनाबूद करना चाहेगा। ऐसा करने के लिए वह अपने परमाणु हथियारों के 'प्रथम उपयोग न करने' के अपने वादे को तोड़ भी सकता है। प्रो. विपिन नारंग के इस खुलासे से एशिया में सनसनी फैलनी स्वाभाविक थी। 
 
इसमें संदेह नहीं कि वर्तमान सरकार के नेतृत्व की प्रकट रीति-नीति से भारत अपनी नरम और उदार छवि को तोड़ने में सफल हुआ है। सर्जिकल स्ट्राइक इसका उदाहरण है। दूसरी ओर भारत इस समय अपने लिए हवा में एक ऐसा सुरक्षा कवच बनाने के लिए काम कर रहा है कि दुश्मन देश से आने वाली मिसाइलें, चाहे वे परमाणु हथियारों से लदी हों या पारंपरिक हथियारों से, उन्हें हवा में ही नष्ट किया जा सके। 
 
इस दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों को हाल ही में एक उल्लेखनीय सफलता मिली, जब उन्होंने फरवरी 2017 में एक अवरोधक मिसाइल का सफल परीक्षण किया कि जिसने लक्ष्य पर जाती बैलेस्टिक मिसाइल को पृथ्वी के वायुमंडल में ही मार गिराया। 2,000 किमी तक की मारक क्षमता रखने वाली इस मिसाइल को बंगाल में खड़े नौसेना के जहाज से छोड़ा गया था।
 
इस सफल परीक्षण के बाद भारत अमेरिका, रूस और इसराइल जैसे देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है। जाहिर है पाकिस्तान के लिए यह एक घबराहट का विषय है, क्योंकि यह अवरोधक मिसाइल उसकी मारक क्षमता में रोड़ा साबित होगी। यद्यपि भारत को अभी कुछ समय और चाहिए, जब वह उन्हें तैनात कर सकेगा। 
 
चूंकि अवरोधक मिसाइलों का उत्पादन करने और उन्हें तैनात करने में अभी समय लगेगा इसलिए इस दौरान सुरक्षा के लिए भारत ने इसराइल से बराक मिसाइलें खरीदने का निर्णय लिया है, जो उच्च कोटि की अवरोधक मिसाइलें हैं। इसराइल की बराक मिसाइलें दुश्मन देश के किसी भी लड़ाकू विमान, चालकरहित टोही विमान (ड्रोन) आदि को हवा में नष्ट कर सकती हैं। 
 
मजेदार बात यह है कि पाकिस्तान ने जो मिसाइलें विकसित की हैं उनके नाम बाबर, गजनवी, घौरी (गौरी) आदि हैं। पाकिस्तान की सोच देखिए कि भारत के साथ अपने हजारों वर्षों के साझा इतिहास को तोड़कर उसने अपने तार उन आक्रमणकारियों से जोड़ने की कोशिश की जिनका उनके अपने देशों में भी कोई नामलेवा नहीं है। ये आक्रमणकारी पाकिस्तान को रौंदते हुए भारत पहुंचे थे और अब वहां गर्व से इनके नाम पर मिसाइलों के नाम रखे जाते हैं। 
 
सच तो यह है कि यदि भारत एक बार अपना घर सुरक्षित कर ले तो फिर हम जानते हैं कि आक्रमण से बेहतर रक्षा की कोई और दूसरी नीति नहीं होती है। जिस तरह चीन जरूरत पड़ने पर अपनी शक्ति दिखाना नहीं चूकता, वैसे ही भारत को भी समय-समय पर अपनी शक्ति को दिखाते रहना होगा ताकि दुश्मन देश किसी भी प्रकार का दुस्साहस करने की बात सोच भी नहीं सके।
 
सौभाग्य से भारत के पास अत्याधुनिक ब्रह्मोस मिसाइल है, जो रूस और भारत के बीच सहयोग का परिणाम है। इस मिसाइल से चीन भी खौफ खाता है, क्योंकि इसकी रफ्तार ध्वनि की गति से लगभग 3 गुना तेज है, शक्तिशाली है और लक्ष्य को भेदने की क्षमता अद्वितीय। 
 
अविश्वसनीय है कि ये मिसाइलें बहुत कम ऊंचाई पर उड़ सकती हैं (यहां तक कि 4 मीटर की ऊंचाई पर भी) अत: वे दुश्मन के राडार पर नजर नहीं आती और जब तक आती हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है अत: इनको मार्ग में मार गिराना लगभग नामुमकिन है। इस तरह यदि हमारा सुरक्षा कवच पक्का हो और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें पृथ्वी की सतह पर, लड़ाकू विमानों पर और पानी के जहाजों पर उड़ने के लिए तैनात हों तो फिर भारत सरकार चैन से विकास की ओर अपना ध्यान केंद्रित कर सकती है। 

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