कार्तिक हत्याकांड : विश्वास की हत्या

-डॉ. गरिमा संजय दुबे
 
वर्तमान समय में अपनों द्वारा, परिचितों द्वारा शोषित होते और कई तरह की आपराधिक घटनाओं में अपनों के ही हाथ होने की घटनाएं मुझे बचपन में पढ़ी गई बाबा भारती की यह कहानी याद दिलाती है, जब डाकू खड़गसिंह ने रोगी होने का नाटक कर बाबा भारती से उनका घोड़ा चुरा लिया था, तब बाबा भारती ने उससे कहा था कि किसी को यह घटना मत बताना वरना लोगों का गरीबों, जरूरतमंदों और रोगियों से विश्वास उठ जाएगा। कितनी प्रासंगिक बात ‍कही कि अपना बनकर कभी किसी का बुरा मत करना नहीं तो लोगों का अपनों से ही विश्वास उठ जाएगा।
 
आज का समय भी खंडित आस्थाओं और विश्वासों का युग है, जहां आप किसी करीबी के मन में चल रही बात पकड़ नहीं पाते और घटनाओं के घट जाने के बाद पूरा समाज एक भय से ग्रस्त हो जाता है और नतीजा? सबका एक-दूसरे पर से विश्वास उठने लगता है।
 
मैं एक मां हूं तथा अक्सर मैं अपने बच्चे को किसी भी अजनबी से बात करने से मना करती हूं, किसी लालच में न आने और घटनाएं बताकर सतर्क करती रहती हूं। दु:ख भी होता है कि हम बच्चे को अविश्वास करना सिखा रहे हैं, लेकिन इस तरह की सतर्कता के अलावा हमारे पास कोई विकल्प है भी नहीं।
 
समाज में दिन-ब-दिन बढ़ती ऐसी घटनाएं हमारे मन में अपनों के प्रति, अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों के प्रति भी संशय से भर देती हैं। निश्चित रूप से एक व्यक्ति की घटना पूरे समाज को कटघरे में खड़ा करती है, जहां हम भौतिक रूप से तो संपन्न हो रहे हैं लेकिन संवेदनाओं के स्तर पर हमारी विपन्नता केवल विचारणीय ही नहीं, भयावह भी है।
 
हम किस पर विश्वास करें? यही तय करना आज कठिन हो गया है। मानवीयता, संवेदनाओं से हम हमारे बच्चों को किस तरह परिचित करवा पाएंगे, जब हर तरफ अविश्वास का जहर और प्रदूषण फैला हो। 

कल्पना कीजिए उस माता-पिता के दु:ख की जिन्होंने कोई गुनाह न होने पर भी अपनी संतान खो दी। इस दर्द का कोई मरहम नहीं है, आप कल्पना करने मात्र से सिहर जाएंगे। क्या दोष था उस मासूम का, जो कि हैवानियत का शिकार बना। और क्या कारण था कि एक ही गांव के रहने वाले इस कदर दरिंदगी पर उतर आए कि एक घर की खुशियों पर ग्रहण लगा दिया।
 
समाज में कठोर दंड विधान का अभाव भी इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। निश्चित रूप से कठोर दंड अपराधी के मन में भय पैदा करता है लेकिन क्या केवल कठोर दंड ही समाज में बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति का हल है? शायद नहीं। संवेदनाओं का अभाव और स्वार्थ की प्रवृत्ति इंसान को हिंसक बनाती है। 
 
कार्तिक की हत्या और ऐसी कई घटनाएं केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज में विश्वास की, संवेदनाओं की हत्या है। कल तक मैं अपने बच्चे को अजनबियों से सतर्क रहने के लिए कहती थी, आज मुझे उसे यह कहना पड़ता कि कोई भी चाचा-चाची, अंकल-आंटी या कोई भी रिश्तेदार हो, उन पर कभी विश्वास मत करो।
 
एक मासूम-सा सवाल उस बच्चे ने आसपास वाले कई पड़ोसी अंकल-आंटी का नाम ले-लेकर पूछा कि 'मां क्या इन सब पर भी नहीं?' मैं निरुत्तर थी, क्या कोई मुझे बताएगा कि मैं अपने बच्चे को क्या उत्तर दूं?

वेबदुनिया पर पढ़ें