आधुनिक युग में, जहाँ महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, ऐसे में घूंघट जैसी प्रथाओं पर सवाल उठना लाज़मी है। पर क्या यह व्यक्तिगत पसंद का मामला भी हो सकता है, या यह पारिवारिक मर्यादा और सामाजिक दबाव का परिणाम है? क्या यह परंपराओं का सम्मान है, या यह महिलाओं की प्रगति में बाधा है? सवाल तो हैं और जब दुनिया करे सवाल तो खान सर क्या देंगे जवाब, ये तो वक्त ही बताएगा।