दुनिया को हिटलर के ‘होलोकास्‍ट’ के लिए नहीं, बीथोवन की ‘सिम्‍फनी’ के लिए याद रखा जाना चाहिए…

Photo: Sandeep singh sisodiya
हिटलर की नफरत से यहूदियों और उनके बच्‍चों की गई हत्‍याओं के बाद भी दुनिया खत्‍म नहीं हुई, न ही बंद हुई। लेकिन लुडविग वान बीथोवन की सिम्‍फनीऔर उसके कर्न्‍चेटोजकी धुनों से दुनिया और ज्‍यादा रोमेंटि‍क और ज्‍यादा खूबसूरत होगी, यह तो तय है

जर्मनी की सड़कों पर साठ लाख यहूदियों के निस्‍तेज और ठंडे शव। करीब 15 लाख बच्‍चों की खून से सनी बे-हरकत लाशें। इसकी गंध कई दशकों तक पसरी रहेगी।

नस्‍लवादी साम्राज्‍य की स्‍थापना की जिद में हिटलर का यह ‘होलोकास्‍ट’ मानव इति‍हास में अब तक के सबसे बड़े ‘नरसंहारों’ में दर्ज हो चुका है।

अतीत की स्‍मृति‍ में खौफनाक तरीके से छुपे इस खूनी मंजर के दृश्‍य अक्‍सर वर्तमान की आंखों में उभर आते हैं। लेकिन सुख यह है कि इन दृश्‍यों के बैकग्राउंड में मुझे हिटलर के खून से लथपथ हाथ नहीं, बल्‍कि लुडविग वान बीथोवन की ‘सि‍म्‍फनी’ सुनाई आती है।

इसलिए जर्मनी को हिटलर के लिए नहीं, बीथोवन के संगीत के लिए याद किया जाना चाहिए।

दुनिया को यहूदियों की लाशों की गंध के लिए नहीं, उन लाशों के आसपास बजती बीथोवन की सिम्‍फनी की धुनों के लिए याद रखा जाना चाहिए। हमेशा, हमेशा के लिए...
Photo: Sandeep singh sisodiya

अप्रैल 1800 में विएना की एक शाम में बीथोवन जब अपनी पहली सिम्‍फनी परफॉर्म कर रहा था तो उसके सामने खड़ी दुनिया जैसे कोई अचंभा सुन रही थी। वो सारी सामंती घरों की लड़कियां मन ही मन पियानो को छूती बीथोवन की उंगलियों को चूम रही थीं। वो बीथोवन को अपनी बाहों में भर रही थीं, क्‍योंकि ऐसा वो सरेआम कभी नहीं कर सकती थीं। बीथोवन सिर्फ स्‍वप्‍नों का ही प्रेमी था।

यह वही रोमांटि‍क सिम्‍फनी थी, जिसे उसने 29 साल की उम्र में कम्‍पोज किया था।

बीथोवन को कई बार प्‍यार हुआ। लेकिन वो उस प्‍यार को कभी किसी क्षितिज के किनारे नहीं ले जा सका। किसी समंदर के किनारे उसका हाथ पकड़कर उसके साथ ‘लव वॉक’ नहीं कर सका। सबसे उच्चतम स्तर के प्रेम की कभी-कभी यही नियति होती है।

उसने हर बार अपने प्‍यार को अपने म्‍यूजिक में ही एक्‍सप्‍लोर किया। क्‍योंकि दुनिया के लिए वो सिर्फ एक साधारण आदमी था। शायद इसीलिए बीथोवन ने अपने भीतर एक दुनिया रच ली और सिर्फ अपने संगीत से ही उसने दुनिया से बात की। उसने सुनना भी बंद कर दिया और चुप्‍पी भी अख्‍त‍ियार कर ली।

वो सिर्फ अपने पियानो के की-बोर्ड पर ही जिंदा था

उसने म्‍यूजिक भी अपनी आत्‍मा में रचा और प्रेम भी अपनी कल्‍पना या शायद अपने भ्रम में ही किया। हालांकि कहा जाता है कि वो एंतोनी ब्रेंतानो नाम की एक शादीशुदा महिला से प्रेम करता था, लेकिन वो साकार नहीं था। शायद एकतरफा। बीथोवन का कोई अमूर्त जैस्‍चर। जो शायद है ही नहीं, था ही नहीं कहीं।

इसलिए उसके दिल में एक काल्‍पनिक ‘म्‍यूज’ भी थी, जिसे वो किसी जीती जागती प्रेमि‍का की तरह प्रेम करता और दुलारता था। जिसके लिए उसने लिखा था,

ओह, माय लव! नींद की आखि‍री तह में सोए हुए मैं तुम्‍हारे बारे में ही सोच रहा हूं, यहां मैं खुश हूं, लेकिन दुख भी बहुत है। या तो मैं पूरी तरह से तुम्‍हारे साथ हो सकता हूं या बि‍ल्‍कुल भी नहीं। इसलिए मैंने तय किया है कि मैं दुनिया में घूमता र‍हूंगा, जब तक कि उड़कर तुम्‍हारी बाहों में न आ जाऊं
Photo: Sandeep singh sisodiya

प्रेम के इन सारे अज्ञात ठि‍कानों पर जीते हुए उसने रोमांटिसिज्‍म की कई धुनें बनाई। वो क्‍लासिक भी रचता रहा और रोमांस भी। क्‍योंकि जिंदगी की करवटों ने उसे क्‍लासिक और प्रेम ने उसे रोमांटि‍सिज्‍म की तरफ खींचा।      
कुछ अग्‍ली, चिढ़चिढ़े, बेतरतीब रहने वाले और फक्‍कड़ बीथोवन की आत्‍मा को शायद पहले से पता था कि भविष्‍य की दुनिया अवसाद, निराशा और तमाम तरह के दुख-पीड़ाओं से भरी-घि‍रीं होगी, इसलिए वो ऐसा संगीत रच गया जो हमारी जिंदगी को क्‍लासिकल भी बनाता है और रोमांस का सुख भी देता है।

1827 में जब बीथोवन की मृत्‍यु हुई तब वह अपने म्‍यूजिक सेंस के सबसे एक्‍स्‍ट्रीम जैस्‍चर में था। तब उसके भीतर प्रेम भी था और पीड़ा भी। तब वह अपनी दसवीं सिम्‍फनी की धुनों के बारे में सोच रहा था। वो चाहता था कि वो हवा को संगीत में तब्‍दील कर सके या हवा से संगीत पैदा कर सके। लेकिन दसवीं सिम्‍फनी को पूरा करने से पहले ही उसकी मौत हो गई।

कहा जा रहा है कि बीथोवन की अधूरी धुनों को पूरा करने के लिए म्यूजिशियंस की एक टीम काम कर रही है। इसके लिए ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार किया जा रहा है, जो बता सकेगा कि धुन बनाते वक्त बीथोवन क्या सोच रहा था? उसकी धड़कनें कैसे धड़क रही थी? बीथोवन म्‍यूजिक के आर्काइव की प्रमुख क्रिस्टीन सीगर्ट ने भी इस बात की पुष्‍ट‍ि की है।

हालांकि अपनी मौत से पहले बीथोवन दुनिया को 9 सिंम्‍फनी, 7 कर्न्‍चेटोज पीस, 32 पियानो सोनाटा, 10 वायलिन सोनाटा और कुछ अन्‍य कम्‍पोजिशंस दे गया। जो शायद हिटलर के होलोकास्‍ट को हमेशा नीचा दिखाती रहेगी।

यह धुनें याद दिलाती रहेंगी कि ऐसी कई त्रासदियों के बाद भी दुनिया जारी रहेगी। संगीत रचते हुए भले ही बीथोवन बहरा हो जाए, लेकिन दुनिया अपनी आत्‍मा से उसकी धुनें सुनती रहेगी। दुनिया की सबसे भयावह त्रासदी के बीच भी बीथोवन की सिम्‍फनी गूंजती रहेगी।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी