सफलता के शिखर को चूमती मोदीजी की हाल की विदेश यात्रा

प्रधानमंत्री ने विगत सप्ताह एक ही सांस में 5 देशों की बाधा दौड़ पूरी कर दी। जैसा कि मैंने पिछले अंक में लिखा था कि यह यात्रा प्रधानमंत्री की अब तक की सबसे महत्वपूर्ण यात्रा होगी जिसमें विगत 2 वर्षों के उनके प्रयासों की फसल कटेगी, और हुआ भी यही।
 
इस शानदार फसल ने भारतीय कूटनीति में एक नए उत्साह का संचार किया और भारतीय जनता को परिणामों से रोमांचित किया। इस यात्रा में अनेक उद्देश्यों को प्राप्त किया गया और कई नए लक्ष्यों की ओर संघान किया गया।
 
अफगानिस्तान में दिल जीता, कतर में नए व्यापारिक समझौतों पर दस्तखत हुए, स्विट्जरलैंड में न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) की सदस्यता के लिए समर्थन हासिल हुआ, अमेरिका में मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजिम की सदस्यता पर मुहर लगी और मैक्सिको में तो भारतीय झंडा ही गाड़ दिया। 
 
मिसाइल टेक्नोलॉजी ग्रुप के 34 देशों के समूह में से किसी एक सदस्य ने भी भारत की दावेदारी का कोई प्रतिरोध नहीं किया। इस तरह भारत की दावेदारी निर्विरोध हो गई और अब मात्र औपचारिकता ही बची है सदस्य बनने में।
 
विशेषज्ञों की मानें तो इन सफलताओं में भारतीय कूटनीति का प्रभाव तो था ही किंतु अधिक प्रभाव मोदीजी की विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के साथ व्यक्तिगत केमिस्ट्री का रहा। ऐसा तभी संभव है, जब आपके द्वारा पूरी ईमानदारी और सदाशयता के साथ राष्ट्राध्यक्षों से संबंध बनाए गए हों।
 
भारत न्यूक्लीयर सप्लायर ग्रुप की सदस्यता मिलने के किनारे पहुंच चुका है, क्योंकि यहां भी हमें 48 में से लगभग 40 देशों का समर्थन तो प्राप्त हो ही चुका है, या यूं कहें कि मात्र चीन के अवरोध को पार करना है, जो अब लगभग अकेला पड़ चुका है। यद्यपि बिना चीन की स्वीकृति के यह दरवाजा अभी खुलना संभव नहीं लगता।
 
हम भारतीयों को एक सुखद गौरवपूर्ण आनंद की प्राप्ति तब हुई, जब अमेरिकी संसद की संयुक्त सभा में हमारे प्रधानमंत्री का स्वागत सचमुच एक महानायक की तरह हुआ। जिस गर्मजोशी से सांसद उनसे मिले, उससे जरा भी अहसास नहीं हुआ कि अमेरिका ने कभी मोदीजी के अमेरिका में प्रवेश पर पाबंदी लगाई थी। सभी सांसद उन्हें देखने, मिलने और सुनने को आतुर दिखे। 
 
कूटनीतिक दृष्टि से अमेरिका की संसद में मोदीजी द्वारा दिया गया भाषण भारतीय कूटनीति का एक अनमोल दस्तावेज है जिसमें मैत्री संबंधों, ऊर्जा, रक्षा, शिक्षा, पर्यावरण और आतंकवाद जैसे अनेक क्षेत्रों से लेकर विश्व-कल्याण तक भारत के विचारों को प्रभावी ढंग से रखा गया।
 
जैसी कि अपेक्षा थी उन्होंने आतंकवाद पर पाकिस्तान का बिना नाम लिए उसकी सारी गतिविधियों का काला चिट्ठा माननीय सदस्यों के सामने रख दिया। भाषण के बाद जिस तरह से अमेरिका के दोनों दलों के सांसदों ने मोदीजी को घेरकर उनके हस्ताक्षरों की मांग की, उससे लगता है कि अमेरिकी कांग्रेस में अब कोई बिल जो भारतीय हित में होगा, वह तुरंत पास हो जाएगा या फिर जो अहित में होगा, उसे रोक दिया जाएगा। 
 
इस भाषण ने मोदीजी का कद विश्व नेताओं के समकक्ष किया है, क्योंकि उन्होंने द्विपक्षीय सहयोग के अतिरिक्त विश्व के हित में भी सहयोग करने की भारत की मंशा को रेखांकित किया। ऐसा केवल एक विश्व-नेता ही कर सकता है। 
 
कुल मिलाकर यह यात्रा अपने कूटनीतिक एवं व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ति करने में बेहद सफल रही है। पाकिस्तान पूरी तरह बौखला चुका है और पाकिस्तानी मीडिया में हाहाकार मचा हुआ है, किंतु उसकी विस्तृत चर्चा अगले लेख में। 
 
अब प्रधानमंत्री को दूसरी पारी खेलने की शुरुआत करनी होगी, क्योंकि अभी तक के प्रयासों का फल वे प्राप्त कर चुके हैं। अगली पारी में लक्ष्य नि:संदेह अधिक दुष्कर होंगे इसलिए प्रयासों की सघनता अधिक तीव्र करनी होगी। 
 
खिलाड़ी हो या नेता, जब वे सफलता प्राप्त करते हैं तो जनता की अपेक्षाएं और आकांक्षाएं उनसे और अधिक बढ़ जाती हैं। भारत की जनता तो यही चाहेगी की जीत हमेशा भारत की हो। किंतु सच तो यह है कि कूटनीति में जरूरी नहीं कि जीत हर बार आपकी हो और जब कोई झटका लगता है तो अवसाद भी अधिक होता है और आलोचनाएं भी तीव्र होती हैं। 
 
यद्यपि मोदीजी उन लोगों में हैं, जो अपनी दक्षता का स्तर स्वयं निर्धारित करते हैं और ऐसे में हमें यह विश्वास है कि सफलता का प्रतिशत निश्चित ही बहुत अधिक होगा। भारतीय जनता की शुभेच्छा उनके साथ है।

वेबदुनिया पर पढ़ें