प्रेमानंद महाराज पर रामभद्राचार्य के बिगड़े बोल! क्या संतवाणी में छिपा है ज्ञान और भक्ति का द्वंद

WD Feature Desk

सोमवार, 25 अगस्त 2025 (13:19 IST)
rambhadracharya on premanand ji maharaj: हाल ही में, जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का एक यूट्यूब चैनल को दिया गया इंटरव्यू चर्चा का विषय बन गया है। इस इंटरव्यू में, जब उनसे प्रेमानंद महाराज के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि प्रेमानंद जी का बिना किडनी के जीवित रहना कोई चमत्कार नहीं है। उन्होंने चुनौती देते हुए कहा, "अगर चमत्कार है तो मैं चैलेंज करता हूं प्रेमानंद को कि एक अक्षर संस्कृत बोलकर दिखा दें बस या मेरे कहे गए संस्कृत के श्लोकों का अर्थ समझा दें।" इस बयान ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जैसे कि क्या यह सिर्फ शास्त्र ज्ञान का अहंकार है या इसके पीछे कोई गहरा अर्थ छिपा है? 

ज्ञान बनाम भक्ति:
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने अपने बयान में शास्त्रीय ज्ञान को चमत्कार का पैमाना बताया। उन्होंने कहा कि चमत्कार वही है जो शास्त्रीय चर्चा पर सहज हो और श्लोकों का सही अर्थ बता पाए। दूसरी ओर, प्रेमानंद महाराज को लाखों लोग उनकी सादगी, भक्ति और राधारानी के प्रति उनके प्रेम के लिए जानते हैं। वर्षों से उनकी दोनों किडनियां खराब होने के बावजूद उनका हर दिन भक्ति में लीन रहना, उनके अनुयायियों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है। 

यह विवाद एक तरह से ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग के बीच के पुराने द्वंद्व को दर्शाता है। क्या ज्ञान ही एकमात्र कसौटी है, या भक्ति और प्रेम का भी अपना महत्व है? हमारे शास्त्रों में भी भक्ति मार्ग को अक्सर ज्ञान मार्ग से ऊपर का दर्जा दिया गया है। ज्ञान हमें तर्क और शास्त्र सिखाता है, लेकिन भक्ति हमें सीधे ईश्वर से जोड़ती है। इतिहास में कई उदहारण मिलते हैं जब कई ज्ञानी पुरुषों के लिए उनका ज्ञान ही अहंकार का कारण बन गया है, जबकि भक्त अपनी विनम्रता और समर्पण से ईश्वर रुपी सच्चे ज्ञान को उपलब्ध हुए।

क्या है सच्ची संतवाणी का अर्थ?
लाखों लोग प्रेमानंद महाराज के पास सिर्फ ज्ञान के लिए नहीं, बल्कि जीवन जीने की प्रेरणा और सात्विक मार्ग पर चलने के लिए जाते हैं। वे अपने प्रवचनों में जीवन की जटिल समस्याओं को सरल भाषा में समझाते हैं, जिससे आम जनता उनसे जुड़ पाती है। अगर शास्त्र का ज्ञान किसी के जीवन में प्रकाश नहीं ला सकता, तो उसका क्या उपयोग? प्रेमानंद जी की लोकप्रियता क्षणभंगुर नहीं कही जा सकती, क्योंकि यह किसी दिखावे या चमत्कार पर आधारित नहीं है, बल्कि उनकी भक्ति और सादगी पर है।

रामभद्राचार्य जी का यह बयान उनके अपने ज्ञान के प्रति अहंकार को दर्शाता है। एक सच्चा ज्ञानी पुरुष कभी भी अपने ज्ञान को ऊंचा दिखाने के लिए किसी भक्त को चुनौती नहीं देता। ज्ञान का असली मर्म शब्दों से परे होता है और उसका उद्देश्य विनम्रता और प्रेम को बढ़ावा देना होता है। रामभद्राचार्य के वचन उनके ज्ञान से ज्यादा उनके भीतर की हीनभावना का प्रदर्शन कर गए, जबकि प्रेमानंद जी की लोकप्रियता का असली कारण उनका राधा नाम का प्रचार है, न कि उनका स्वयं का।

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