समय भी एक अबूझ पहेली है वैज्ञानिकों के लिए

अभी समय क्या हुआ है? सब बता देंगे, क्योंकि सबके हाथों में घड़ी या मोबाइल फोन हैं। किंतु एक समय ऐसा भी था, जब पूरे शहर में एक घंटाघर होता था और पूरा शहर उसकी आवाज पर उठता और सोता था। बाद में धीरे-धीरे आस-पास की किसी दुकान में पेंडुलम वाली घड़ी आई, जो पूरे मोहल्ले को समय बताती थी। 
 
फिर एक समय ऐसा आया, जब हर घर में एक अलार्म घड़ी सजी और आज तो हर घर में कलाइयों से ज्यादा दीवारों पर घड़ियां हैं। इस तरह समय महत्वपूर्ण होता गया और दुनिया समय की गुलाम होती गई। समय को देखना सीख लिया, उसके महत्व को भी समझ लिया और हम समय के साथ बंधते चले गए या फिर समय हमें बांधता चला गया।
 
किंतु समय स्वयं क्या है, इसे कोई समझ नहीं पाया। यह बलवान है या कीमती है? मिथ्या है या सत्य है? गूढ़ है या गहरा है? वैज्ञानिकों की मानें तो समय स्वयं एक बड़ा रहस्य है जिससे पर्दा उठना शेष है। वैज्ञानिक जूझ रहे हैं समय को समझने के लिए। समय का आदि क्या है? अंत क्या है? जानने के लिए। 
इस आलेख का उद्देश्य आपको समय संबंधी जटिल गवेषणाओं की एक झलक देनी है। जिस समय को हम जानते हैं वह तो मात्र पृथ्वी के रहवासियों की सुविधा के लिए मनुष्य का एक साधारण आविष्कार है। 
 
घड़ी, सूर्य को स्थिर मानकर पृथ्वी द्वारा अपनी धुरी पर घूमने की गणना करने का एक यंत्र मात्र है। यह यंत्र अपने शहर का ही समय ठीक से बता दे तो बड़ी बात है। वह तो भारतवासियों की सुविधा के लिए पूरे राष्ट्र का समय एक कर रखा है अन्यथा प्रत्येक शहर का स्थानीय समय (लोकल टाइम) भिन्न है। यदि मुंबई में सूर्योदय 6 बजे होता है तो कोलकाता में 5 बजे ही हो जाता है, क्योंकि दोनों की भौगोलिक स्थिति में 1 घंटे का अंतर है। 
 
अमेरिका में एक समय ऐसा था, जब 300 से ज्यादा समय प्रचलित थे। हर शहर का अपना स्थानीय समय। ट्रेन का टाइम टेबल बनाना मुश्किल हो गया था। अब सुविधा के लिए अमेरिका में केवल 4 टाइम जोन रखे गए हैं। हर देश की भौगोलिक स्थिति के अनुसार उसका समय होता है। 
 
जब हम एक देश से दूसरे देश में जाते हैं तो वहां के स्टैंडर्ड (मानक) समय के अनुसार अपनी घड़ी को ठीक करना पड़ता है। इसीलिए कुंडली बनाने में समय के साथ स्थान का भी उतना ही महत्व है यानी जिस समय को हम जानते हैं, वह न तो शाश्वत है और न ही एक सार्वभौमिक सत्य। 
 
थोड़ा आगे बढ़ें तो जानेंगे कि बिना गति के भी समय का कोई अस्तित्व नहीं। यदि ब्रह्मांड के पिंड स्थिर होते, सूर्य स्थिर होता और धरती भी तब समय का नाप संभव नहीं होता अर्थात गति है तो समय है। और थोड़ा आगे बढ़ें। यदि परिवर्तन प्रकृति का नियम न होता, तब समय के क्या मायने होते? परिवर्तन है तो समय है। यदि ये न हों तो भूत और भविष्य का कोई अर्थ नहीं। 
 
दीवार पर लटकी तस्वीर में कोई परिवर्तन नहीं होता अत: उसके लिए समय निरपेक्ष है। उसके लिए तो भूत, वर्तमान एवं भविष्य तीनों सामने हैं। दूसरा उदाहरण लें। मंगल ग्रह पर कोई जीवन नहीं है, कोई पानी का प्रवाह भी नहीं, किसी पेड़ का उगना नहीं। कुछ देर के लिए मान लीजिए कि अन्य कोई और परिवर्तन भी नहीं। वह ग्रह तो एक तस्वीर की तरह अंतरिक्ष में लटका एक पिंड मात्र है जिसका कोई भविष्य नहीं। 1,000 वर्ष पूर्व भी वह वैसा ही था और आगे 1,000 वर्ष बाद भी वैसा ही रहेगा। उसके लिए वक्त का बीतना बेमानी है। वह 687 दिनों में सूर्य की परिक्रमा कर बिना किसी परिवर्तन के उसी जगह पहुंच जाता है, जहां वह 1 वर्ष पूर्व था यानी अपने भूतकाल में।
 
समय की कहानी में एक बहुत बड़ा नाटकीय मोड़ आया, जब आइंस्टीन ने गणनाओं के आधार पर सिद्ध कर दिया कि गतिमान वस्तु का समय स्थिर वस्तु की अपेक्षा धीमे चलता है। यह अंतर तभी दिखाई देता है, जब गतिमान वस्तु बहुत वेग से चल रही हो। बाद में प्रयोग हुए। एक घड़ी को पृथ्वी पर और दूसरी को जेट में रखकर जेट गति से पृथ्वी का चक्कर लगाया तो पाया गया कि घड़ियों के समय में सूक्ष्म बदलाव आ चुका है। 
 
इस प्रयोग ने वैज्ञानिकों की नींद उड़ा दी। भौगोलिक स्थिति से परिवर्तित होने वाला समय अब गति पर निर्भर भी हो गया अर्थात तीव्र गति से चलने वाले पिंड में समय की गति भी अलग होगी। भौतिक शास्त्रियों के अनुसार समय एक आयाम है, ठीक उसी तरह जिस तरह दिशाएं होती हैं। यह मानने में कठिनाई नहीं है किंतु यहां अनेक प्रश्न खड़े हो जाते हैं।
 
जहां तक दिशाओं का प्रश्न है, हम दसों दिशाओं में यात्रा कर सकते हैं। पूर्व से पश्चिम की ओर यात्रा कर सकते हैं और फिर तुरंत दिशा बदलकर पश्चिम से पूर्व की ओर यात्रा कर सकते हैं। उसी प्रकार यदि समय भी एक आयाम है तो वर्तमान से भूत या भविष्य में हमारी यात्रा संभव होना चाहिए। फिर भविष्य से वर्तमान में लौट पाना भी चाहिए। मुश्किल यह है कि विज्ञान न तो इसकी पुष्टि कर पा रहा है और न ही खंडन।
 
आइंस्टीन ने सिद्ध किया कि यदि मानव प्रकाश के वेग को प्राप्त कर ले तो उसके लिए समय का बढ़ना बंद हो जाएगा। उनके अनुसार प्रकाश के वेग को पाना मुश्किल तो है, पर असंभव नहीं। किंतु प्रकाश के वेग से आगे जाना असंभव है, क्योंकि यदि मनुष्य प्रकाश के वेग को तोड़ने में सफल रहा तब समय का प्रवाह भविष्य की ओर न होकर भूतकाल की ओर हो जाएगा। इसी सिद्धांत को लेकर काल्पनिक कथाओं के लेखकों के मन में टाइम ट्रेवल की कल्पना आई और कई फिल्मों का निर्माण हुआ। 
 
कल्पना करिए उस अनोखे की संसार जिसमें भूतकाल और भविष्य काल में जाने के लिए टूर पैकेज होंगे। आप भूतकाल में जाकर अपने पुरखों से मिलकर लौट सकेंगे तो भविष्यकाल में जाकर अपनी अग्रिम पीढ़ियों से साक्षात्कार कर सकेंगे। 
 
शायद यह कल्पना इतनी जल्दी साकार न हो किंतु विश्वास मानिए कि यदि प्रकृति का कोई नियम आड़े नहीं आया तो आपकी आने वाली पीढ़ियों में से कोई-न-कोई कभी-न-कभी आपसे मिलने अवश्य आएगा और वह आपके लिए एक रोमांचकारी अनुभव होगा। 
 
भले ही आज यह कल्पना की उड़ान है किंतु वैज्ञानिक प्रगति में कुछ भी असंभव नहीं। आप इस रोमांच की कल्पना का आनंद तो आज ले ही सकते हैं। 
 

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