मन के हारे हार है और मन के जीते जीत!!! जिंदगी सबके लिए आसान नहीं होती या यूँ कहें की जिंदगी किसी के लिए भी आसान नहीं होती लेकिन जिसने मन को जीत लिया समझो वो जी गया। जिंदगी की आधी से ज्यादा कठिनाइयाँ मन पैदा करता है। मुश्किलें हर किसी की जिंदगी में आती और हर इंसान उन्हें अलग-अलग तरीके से झेलता है, कोई रोते हुए, कोई हँसते हुए, कोई जूझते हुए तो कोई इंतजार करते हुए कि ये भी दिन नहीं रहेंगे। एक ऐसी ही जूझती हुई जिंदगी की दास्तान है ये ब्लॉग जिसकी आज हम चर्चा करेंगे।
हर समझदार होते बच्चे का एक सपना होता है कि वो ये बनेगा, वो बनेगा। ऐसा करेगा,वैसा करेगा ब्ला ब्ला ब्ला.... इस बच्चे का सपना था फौजी बनकर देश की सेवा करने का। आप सोच रहे होंगे सपना था मतलब??? इसी सवाल के जवाब में उसने अपना ब्लॉग लिखा हैं। ये और ऐसे कई सवाल जिनके जवाब उसने अपने ब्लॉग के जरिए खुद को दिए और हम सबको भी।
ब्लॉगर का नाम है रजत मिश्रा। रजत मिश्रा वो शख्स है जिसने सपना देखा, उसे पूरा करने की तरफ कदम बढ़ाए, मेहनत की, देखा कि मंजिल करीब है लेकिन...साहिल पर आकर कश्ती डूब गई। सपना देखा और उसे टूटते हुए भी देखा, वो भी तब जब वो पूरा होने की कगार पर था। सपना टूटा, वो शख्स नहीं। एक नए जज़्बे के साथ रजत फिर खड़ा हुआ। ब्लॉग में वो लगातार अपने आपको सँभालता हुआ नजर आता है, आपको बताता है कि जिंदगी तब तक खत्म नहीं होती जब तक आखरी साँस बाकी है।
हाँलाकि ब्लॉग अंग्रेजी में है लेकिन किसी की आपबीती अगर दिल से अभिव्यक्त हो तो भाषा मायने नहीं रखती। रजत ने अपने अनुभवों को जिस शैली में बयाँ किया है वो उम्दा और अद्भुत किस्म की है। कई जगह तो उनका वर्णन अभिभूत कर देने वाला है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह ब्लॉग आज के युवा के लिए प्रेरणास्रोत से कम नहीं है। ऐसे युवाओं के लिए जो छोटी-छोटी निष्फलताओं पर हारने लगते हैं।
रजत के पिता सेना में थे और बचपन से वो सेना से प्रभावित थे। उसका सपना था, अपने पिता की तरह वो लोगों की सलामी और मैडल्स का हकदार बने। जब रजत 10वीं कक्षा में था तब जिंदगी ने उन्हें पहला झटका दिया। ब्लड कैंसर से जूझते हुए उनके पिता की मौत हो गई। अपने और अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए रजत ने एनडीए ज्वाइन करने का फैसला किया क्योंकि वो अपने पिता की तरह सम्मान और साहस की जिंदगी चाहता था और मौत भी। आर्मी बैकग्राउंड से अचानक सिविल बैकग्राउंड में आना रजत के लिए मुश्किल था। लेकिन उसने हर मुश्किल को सहने की ठान ली थी।
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पढ़ने में तेज होने की वजह से रजत को एनडीए में प्रवेश मिल गया और वो अपने सपने की तरफ बढ़ने लगा। बहुत कम समय में ही उसने प्रशिक्षण के दौरान कई उपलब्धियाँ अर्जित की। लेकिन जिंदगी असल में क्या है ये अभी और जानना बाकी था। एनडीए में प्रशिक्षण के दौरान एक सड़क दुर्घटना में उसने अपना दायाँ हाथ गवाँ दिया। फौजी बनने का सपना पानी के बुलबुले की तरह गुम हो गया। पिता की मौत, उनका सपना, माँ व बहन की जिम्मेदारी और अब इस लाचारी के साथ किस्मत जैसे उसे खुद पर हँसती हुई नजर आने लगी।
रजत की जगह कोई और होता तो आत्महत्या कर सारी मुश्किलों को अलविदा कह देता। सोचता कि अब जब खुद ही किसी के सहारे का मोहताज है तो परिवार को क्या सहारा देगा लेकिन रजत उनमें से नहीं था। उसने फिर कमर कसी और एमबीए की तैयार की। आज आईआईएम अहमदाबाद के छात्र हैं जहाँ पढ़ने का हर एमबीए करने वाला युवा सपना देखता है।
जब इंसान के साथ कुछ बुरा होता तो वो उसकी जिंदगी होती है लेकिन लोगों के लिए वो सिर्फ हादसे होते हैं। रजत ने अपनी जिंदगी को हर किसी के सामने इसलिए रखा ताकि अगर कोई भी भटका, हताश, चोटिल उसे पढ़कर फिर से जी उठे तो उसका ब्लॉग सार्थक हो जाएगा। मौत को हराने वाले तो बहुत होते हैं लेकिन रजत ने अपनी मौत से बदतर हुई जिंदगी को हराया और उसे वापस मुस्कुराती जिंदगी बनाया।
रजत की आपबीती पढ़कर ये पंक्तियाँ याद आती हैं:
बेच जरूर दिया है किस्मत ने मुझे वक्त के हाथों, पर मैं बेचारा नहीं हूँ, पर मैं अभी तक हारा नहीं हूँ अकेला हूँ, तन्हा हूँ, तन्हाई से डरा नहीं हूँ, मैं फिर उठ खड़ा हूँ, जिंदा हूँ अब तक, मरा नहीं हूँ।