दुनिया में फैल रहे हैं ओशो के विचार-मां अमृत साधना

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गुरुवार को ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन की प्रमुख मां अमृत साधना का इंदौर आगमन हुआ। उनसे हुई इस सहज और सामान्य मुलाकात में सवाल तो ढेर सारे थे, लेकिन हम चाहते थे कि बगैर सवालों के वह जवाब दें, क्योंकि सवाल तो शाश्वत होते हैंबस, उत्तर ही बदलते रहते हैं। वेबदुनिया के दफ्तर में वेबदुनिया टीम द्वारा उनसे की गई छोटी-सी मुलाकात के अंश।

वेबदुनिया : ओशो क्या है? धर्मगुरु, बाबा या भगवान?

मां अमृत साधना- नथिंग, इनमें से कुछ नहीं। आप उन्हें सिर्फ स्प्रीचुअल साइंटिस्ट मान सकते हैं, बस। विशिष्ट होना गलत है। साधारण आदमी। ओशो कहते हैं, मैं ऑर्डनरी मैन हूं। यदि आप स्वयं को विशिष्ट मानते हैं तो स्वत: ही आप दूसरों को निम्न बना देते हैं। सिम्पली होना सबसे कठिन कार्य है। यह ज्यादा प्रभावशील है।

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वेबदुनिया : क्या आप मानती हैं कि प्रगतिशील होने के लिए एक स्त्री को अपना कोमल तत्व नहीं खोना चाहिए? ओशो ने कहा था, आक्रामक स्त्री आकर्षक नहीं हो सकती, आप इस बात को कैसे विस्तारित करेंगी?

मां अमृत साधना- जी हां, मैं मानती हूं कि स्त्री तत्व को बनाए रखकर ही सांसारिक कोमलता बची रह सकती है। ओशो भी कहते थे कि आगे बढ़ने के लिए यह कतई जरूरी नहीं है कि स्त्री पुरुष हो जाए।

वेबदुनिया : क्या आपको लगता है कि ओशो के विचारों से समाज में बदलाव आया है?

मां अमृत साधना- आप कैसी बात करते हैं। पूरा समाज बदल रहा है। आज के धर्मगुरु और बाबाओं के प्रवचनों में, फिल्मों में, साहित्य की किताबों में सभी में ओशो की झलक मिलती है। चारों ओर से ओशो बरस रहा है। 'ओ माइ गॉड' फिल्म किससे इंस्पायर है? हमारे धर्मगुरु किसको पढ़कर बोलते हैं- उनके प्रवचनों में, कहानी में, जोक्स में, सभी में तो ओशो हैं। उनके आश्रमों या घरों में भरा पड़ा है ओशो साहित्‍य।

यह जरूरी नहीं कि वे इसका क्रेडिट ओशो को देते हैं या नहीं। अब तो वे सशरीर हैं भी नहीं तो किसे धन्यवाद देंगे? यदि देंगे तो फिर वे छोटे हो जाएंगे। इसलिए बेइमानी से ही सही, लेकिन ओशो के विचारों से बदलाव तो आ रहा है।

वेबदुनिया : क्या आपको नहीं लगता कि ओशो के बाद एक प्रभावी चेहरे के अभाव की वजह से ओशो के विचार उतनी तेजी से नहीं फैल सके हैं, क्योंकि कहीं ना कहीं वक्त आज 'टच एंड फील' का है, लोग व्यक्ति से पहले प्रभावित होते हैं, विचार उसे बाद में आकर्षित करते हैं।

मां अमृत साधना- जी नहीं। ओशो ने कहा था, मेरे बाद कोई गुरु नहीं, कोई चेला नहीं, कोई उत्तराधिकारी नहीं। आप चेहरे की बात करते हैं, तो भविष्य में यह सब चेहरे विदा हो जाएंगे। चेहरे के साथ कल्ट आता है और कल्ट के साथ वही सबकुछ आता है, जो अन्य कल्टों के साथ आया और फिर उसमें फॉल आता है।

तो, ओशो के बाद अब कोई नहीं। ओशो ने कहा कि मैं यहां उपलब्ध हूं, इसकी सूचना भर दे दो, लोगों को प्यास होगी तो आएंगे। हमें किसी भी प्रकार का विज्ञापन या लोगों को बुलाने का कार्य नहीं करना है। आपने देखा होगा कि हमारे पुणे स्थित मेडिटेशन रिजॉर्ट का कोई विज्ञापन नहीं होता है।

'गुरुडम' ज्यादा चलने वाला नहीं है। आज की युवा पीढ़ी समझदार हो गई है। वह किसी के पैर नहीं छुती। आप बच्चे से घर में किसी के पैर छुने का कहते हैं तो वह मन मारकर ऐसा करता है, दिल से नहीं, क्योंकि इससे उसमें गिल्ट फिल होती है। आप किसी को झुकाना क्यों चाहते हैं?

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ओशो इस सदी के सबसे बड़े मनोवैज्ञानिक है। उन्होंने ही गांधी के पुत्र का उदाहरण दिया था। आप किसी को जबरदस्ती अच्छा बनाने का कार्य नहीं कर सकते। ऐसा करेंगे तो इसका ठीक उल्‍टा होगा। ओशो ने कहा कि आप मुझे सिर्फ उपलब्ध कराइए, बाकी लोगों पर छोड़ दीजिए।

ओशो ने मानव जीवन और उसकी समस्या पर लगभग 15 हजार सवालों का जवाब दिया है। मानव की हर समस्या का हल उन्होंने बताया है। उनकी 650 से ज्यादा किताबों और ऑडियो-वीडियो की लगभग 9000 से ज्यादा सिरीज है। उनकी पुस्तकें दुनिया की 54 भाषाओं में अनुदित हुई हैं।

अब डिजिटल माध्यम में ओशो है और पहले से कहीं अधिक ओशो के विचार फैल रहे हैं। वे दिन विदा हो जाएंगे, जबकि लोग चेहरे से आकर्षित होकर आएंगे। सबकुछ तेजी से बदल रहा है।

वेबदुनिया : कम्यून की अवधारणा पर प्रकाश डालें?

मां अमृत साधना- कम्यून अब कम्यून नहीं रहा। आप 15 साल पुरानी बात कर रहे हैं। वह अब रिजॉर्ट हो गया है, इसलिए अवधारणा का सवाल ही नहीं उठता। 1989 में ओशो ने ही इसे रिजॉर्ट बनाने को कहा था। इस रिजॉर्ट में सोना बॉथ है। मेडिटेशन है, कैफे है, रेस्टॉरेंट है और सबकुछ। यह मेडिटेशन रिजॉर्ट है।

वेबदुनिया : जोरबा दि बुद्धा- यह क्या है?

मां अमृत साधना- हां, जोरबा भौतिकता का प्रतीक है और बुद्धा अध्यात्म का। ओशो कहते हैं, भौतिकता को छोड़ना नहीं है- दोनों में संतुलन बनाना है। तभी संपूर्ण मनुष्य बनेगा।

वेबदुनिया : ओशो या ओशो कम्यून सिर्फ अमीरों के लिए है?

मां अमृत साधना- यह सिर्फ उन लोगों के लिए हैं, जिन्हें ध्यान की प्यास है। आप सोना खरीदने, गाड़ी खरीदने या भूमि खरीदने जाते हैं तो मोलभाव करते हैं? आपको खरीदना है, इसलिए खरीद ही लेते हैं। फिर आप यह क्यों सोचते हैं कि आप ध्यान सीख रहे हैं तो इतना महंगा क्यों?

यदि आपमें ध्यान की प्यास है तो आप यह नहीं कहते हैं कि थोड़ा सस्ते किस्म का ध्यान करा दीजिए, क्योंकि यह आपकी जिंदगी से जुड़ा है। सोना सस्ता या महंगा खरीद लेंगे तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। एक बच्चा पानी बेच रहा था, एक रुपए में एक गिलास। ग्राहक ने कहा, चार आने में देना हो तो दे। बच्चे ने कहा कि रहने दो अभी आपको प्यास नहीं है वरना मोलभाव नहीं करते।

तो रिजॉर्ट सिर्फ अमीरों के लिए है, ऐसा नहीं। यह उनके लिए हैं, जिनमें प्यास है। वे लोग अपनी पहुंच उस लेवल तक बनाएंगे कि वे यहां आ सकें।

वेबदुनिया : ऐसा माना जाता है कि ओशो को पढ़ने वाला व्यक्ति संसार से विरक्त हो जाता है।‍ फिर उसे घर, परिवार और समाज से कोई सरोकार नहीं रहता।

मां अमृत साधना- हां, आम धारणा तो ऐसी ही है, लेकिन ऐसा वास्तव में होता नहीं है। बाहर के लोग इसे समझ नहीं पाते हैं। ओशो के कई संन्यासी या मित्र ग्रहस्थ हैं। ओशो ने कभी नहीं कहा कि आप संसार छोड़कर ध्यान या साधना करें। वही, जो बात आपने पहले पूछी थी- जोरबा दि बुद्धा। भौतिकता और अध्यात्म दोनों को साधना ही जीवन का ध्येय होना चाहिए।

वेबदुनिया : नारी सशक्तिकरण के लिए ओशो ने क्या कहा?

मां अमृत साधना- नारी के लिए ओशो ने बहुत कुछ कहा है और इसके लिए हम लगातार कार्य भी कर रहे हैं। आज हम यहां इसीलिए आए हैं।

वेबदुनिया : एक नारी को नारी की ही कोख में निरंतर कुचला जा रहा है, कन्या भ्रूण हत्या जैसी भीषण समस्या के मूल में आखिर कौनसी विकृति काम कर रही है?

मां अमृत साधना- हम सब जानते हैं कि सारा दोष सोच का है। समाज क्या है? समाज तो हमसे मिलकर बना है। एक नारी नहीं चाहती कि जिस तरह के अपराध बढ़ रहे हैं, उसके मद्देनजर उसकी बेटी इस संसार में आए और वह सबकुछ झेले, लेकिन स्त्री को सशक्त होना होगा। बदलाव उसे ही लाना होगा। समाज नहीं बदलेगा। पुरुष नहीं बदलेगा, बदलना उसे ही होगा।

वेबदुनिया : स्त्री की असली शक्ति आखिर क्या है, जिसके दम पर वह इस संघर्ष को जीत सके?

मां अमृत साधना- स्त्री की आत्मा ही उसकी शक्ति है। उसी के दम पर उसे दुनिया को जीतना है। आत्मा को ही मजबूत बनाना है।

वेबदुनिया : ओशो की कोई एक ऐसी किताब, जो आपको सबसे ज्यादा पसंद है?

मां अमृत साधना- उनकी सभी किताबें अनूठी हैं। मुझे सभी पसंद हैं।

वेबदुनिया : ओशो संन्यासी, ओशो की नकल क्यों करते हैं?

मां अमृत साधना- सही है। अब आप ही ने कहा है कि यह नकल है तो गलत ही है। नकल शब्द ही अपने आपमें गलत शब्द है। फिर भी कोई ऐसा करता है तो यह उसकी निजता है। यह उसका अपना निर्णय है। उसे रोका नहीं जा सकता।

वेबदुनिया : आप मानती हैं कि प्रेम ने अपना मूल स्वरूप खोया है?

मां अमृत साधना- प्रेम को समझा ही नहीं गया। जो हम देखते-सुनते हैं, वह रोमांस है, प्रेम नहीं। जिसने प्रेम को जान लिया, उसे लोग नहीं स्वीकारते। यह उसी तरह है, जैसे कोई भी प्रतिभाशाली या रचनात्मक इंसान को खारिज किया जाता है, उसी तरह प्रेम को वास्तव में जानने वाला हमेशा अकेला रह जाता है। यह दुनिया प्रेम की विरोधी है। जब दो इनसान शादी करते हैं तो सारा समाज तालियां बजाता है, मगर कहीं दो प्रेम करने वाले साथ में दिख जाएं तो उस पर पत्थर फेंकता है।

वेबदुनिया : मात्र एक शब्द या एक पंक्ति में समझाएं कि अध्यात्म क्या है?

मां अमृत साधना- अध्यात्म आत्मा है। आत्मा को पहचानना अध्यात्म की कला है।

वेबदुनिया : एक स्त्री और पुरुष आखिर क्यों नहीं एक-दूसरे को समझ पाते?

मां अमृत साधना- कभी समझ भी नहीं सकते। देखिए, पुरुष तर्क से काम लेता है, स्त्री ह्रदय से। तर्क दिमाग से उत्पन्न होते हैं। दिमाग अंधा होता है। देख नहीं पाता। दिल को तर्क की जरूरत नहीं, दिल देख लेता है। इसीलिए दोनों में संवाद नहीं हो पाते। संवाद के बिना समझ कैसे विकसित हो सकती है?

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