ब्लॉग-चर्चा में इस बार हम लेकर आए हैं, हिंदी की जानी-मानी चिट्ठाकार प्रत्यक्षा का ब्लॉग। ब्लॉग भी उनका हमनाम ही है और हिंदी के बहुत शुरुआती ब्लॉगों में से एक है। अप्रैल, 2005 से प्रत्यक्षा हिंदी चिट्ठाकारिता के दुनिया में सक्रिय हैं और बहुत कुछ लिख रही हैं। इस बार प्रत्यक्षा के ब्लॉग पर एक नजर :
ब्लॉग पर प्रत्यक्षा का परिचय खुद उनके ही शब्दों में :
कई बार कल्पनाएँ पंख पसारती हैं.... शब्द जो टँगे हैं हवाओं में, आ जाते हैं गिरफ्त में... कोई आकार कोई रंग ले लेते हैं खुद-बखुद... और कोई रेशमी सिरा फिसल जाता है आँखों के भीतर... अचानक ऐसे ही शब्दों और सुरों की दुनिया खींचती हैं... रंगों का आकर्षण बेचैन करता है...
प्रत्यक्षा ने ब्लॉग की शुरुआत तब की, जब इंटरनेट की दुनिया में हिंदी ने अपने पैर पसारने शुरू ही किए थे। इंटरनेट पत्रिका अभिव्यक्ति में उनकी एक कहानी प्रकाशित हुई। यहाँ से लिखने का सिलसिला शुरू हुआ। इंटरनेट के साथियों की ही मदद से यूनीकोड की समस्या सुलझी और इस तरह ‘प्रत्यक्षा’ ब्लॉग की शुरुआत हुई, जिसकी पहली पोस्ट एक कविता थी -
प्रत्यक्षा ने ब्लॉग की शुरुआत तब की, जब इंटरनेट की दुनिया में हिंदी ने अपने पैर पसारने शुरू ही किए थे। इंटरनेट पत्रिका अभिव्यक्ति में उनकी एक कहानी प्रकाशित हुई। यहाँ से लिखने का सिलसिला शुरू हुआ। इंटरनेट के साथियों की ही मदद से यूनीकोड की समस्या
उँगलियाँ आगे बढा कर,एक बार छू लूँ मेरे मन के इस निपट सुनसान तट पर ये लहरें आती हैं कहीं से और चलकर
उसके बाद छूत की तरह लगी यह बीमारी उनके साथ है। सुबह उठकर कुछ भी करने से पहले वह कम्प्यूटर की ओर भागती हैं। प्रत्यक्षा हँसते हुए जवाब देती हैं, ‘मेरे पति कहते हैं कि मैं ब्लॉग ऑब्सेस्ड हो गई हूँ।’
तब से प्रत्यक्षा लगातार लिख रही हैं। गद्य के छोटे-छोटे टुकड़े, कविताएँ, निजी अनुभूतियाँ और कभी-कभी किताबों पर कुछ बातचीत। प्रत्यक्षा पढ़ने की भी बेतरह शौकीन हैं। हिंदी, उर्दू समेत तमाम भाषाओं के लेखकों और उनकी रचनाओं का जिक्र उनके ब्लॉग पर होता रहता है। हाल की ही एक पोस्ट ‘किताबों के बीच’ में वह लिखती हैं -
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‘पानू खोलिया नहीं मिले, लेकिन और कुछ किताबें मिल गईं। इन्नर कोर्टयार्ड मिली और डार से बिछुडी मिली। तालस्ताय मिले और जेन ऑस्टेन मिलीं। चाँदनी बेगम मिली और मित्रो मरजानी मिली। ये सारी किताबें ड्रेसर पर आ गई हैं। घर में थोडा हंगामा मचा है कि एक बार में इतनी किताबें कैसे कोई पढ सकता है, कुछ तो हटाओ यहाँ इस कमरे से। और मैं सोचती हूँ, थोड़ा-थोड़ा सबसे मिलूँ फिर से।’
इसी तरह कुर्तुल ऐन हैदर के उपन्यास चाँदनी बेगम से वह चिट्ठाकारों को परिचित कराती हैं। इस शानदार किताब पर उन्होंने बहुत उम्दा पोस्ट लिखी है। ‘मायोपिक प्रेम’, ‘पार्क में’, ‘रात पाली के बाद’ उनकी कुछ हालहा अच्छी पोस्ट हैं। अगर कोई सहज-सरल रचनात्मक साहित्य का शौकीन हो तो उसके लिए प्रत्यक्षा का ब्लॉग एक अच्छी जगह है। यहाँ पढ़ने के लिए बहुत कुछ ऐसा है, जो अच्छे साहित्य का बेहतरीन नमूना है, और जिसे पढ़ना एक किस्म की ताजगी का एहसास देता है। उनकी एक कविता -
दैनिक जीवन में वित्त जैसे रूखे-सूखे पचड़ों को निपटाती प्रत्यक्षा ब्लॉग की दुनिया में आते ही भावुक-तरल लेखिका में परिणत हो जाती हैं। अपने ब्लॉग के अतिरिक्त वह इंटरनेट की साहित्यिक पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’ और ‘निरंतर’ से भी जुड़ी हुई हैं।
तुम्हारी इच्छा, मेरी इच्छा तुम पुरुष तुम आदम अपने पौरुष के अहंकार में ग्रीवा ताने तुमने कहा अपनी इच्छा बता,मैं भोली अबूझ हव्वा तुम्हारे प्रश्न का मर्म जाने बिना चहककर कहा, मेरी इच्छा रोटी, घर और बार की इच्छा प्यार, बात और साथ की इच्छा
प्रत्यक्षा गुड़गाँव में पावरग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के केंद्रीय कार्यालय में मुख्य वित्त प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। दैनिक जीवन में वित्त जैसे रूखे-सूखे पचड़ों को निपटाती प्रत्यक्षा ब्लॉग की दुनिया में आते ही भावुक-तरल लेखिका में परिणत हो जाती हैं। अपने ब्लॉग के अतिरिक्त वह इंटरनेट की साहित्यिक पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’ और ‘निरंतर’ से भी जुड़ी हुई हैं। निरंतर के लिए उन्होंने विश्व की पहली इंटरैक्टिव धारावाहिक कथा ‘लाल परी’ लिखी है।
‘अनामदास का पोथा’, ‘लाल्टू’, ‘अजदक’, ‘पहलू’ और ‘शब्दों का सफर’ प्रत्यक्षा के पसंदीदा ब्लॉग हैं। हिंदी ब्लॉग पर अपने विचार व्यक्त करते हुए वह कहती हैं कि ब्लॉग में सबसे मजेदार बात यह है कि यहाँ लिखने वाला कोई भी प्रोफेशनल लेखक नहीं है। शुरू-शुरू में ब्लॉग की दुनिया में जो लोग सक्रिय थे, वह अपनी निजी बातें और अनुभव ही लिखा करते थे। अब कुछ पत्रकारों के आने के साथ यह बंधन कुछ टूटा है और बहुत तरह की चीजें ब्लॉग की दुनिया में लिखी जा रही हैं।
ब्लॉग के माध्यम से आदान-प्रदान में काफी इजाफा हुआ है, क्योंकि यह एक इंटरैक्टिव मंच है। यहाँ कोई भी अपनी बात कह सकता है और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकता है। यहाँ बहुत आजादी और खुलापन है। आप खुद ही अपने संपादक है। ब्लॉग बहस का एकबढिया मंच बन रहा है।
हिंदी ब्लॉग की दुनिया निरंतर विस्तार पा रही है। उसकी दिशा और सार्थकता एक वृहद विमर्श का मुद्दा है, लेकिन फिलहाल प्रत्यक्षा के लिखने से एक उम्मीद बँधती है कि कहीं तो कुछ अच्छा लिखा-रचा जा रहा है।