क्या दिल्ली में भी 'मोदी मैजिक' चलेगा?

ऐसा लगता है कि भाजपा दिल्ली विधानसमा चुनावों में अपने राजनीतिक विरोधियों, आप और कांग्रेस से आगे निकल जाएगी। जनमत सर्वेक्षणों में इस आशय की भविष्यवाणी की जा रही है कि राष्ट्रीय राजधानी में भाजपा करीब डेढ़ दशक बाद फिर से अपनी सरकार बना सकती है। इसका एक नतीजा यह भी हो सकता है कि देश की राजधानी में फिर एक बार मोदी का जादू चल सकता है। पर एबीपी-नील्सन और इंडिया टुडे-सिसरो द्वारा कराए गए सर्वेक्षणों में इस बात की भविष्यवाणी की जा रही है कि इस बार दिल्ली का दंगल इतना आसान भी नहीं होगा और आगामी विधानसभा चुनावों में दिल्ली की गद्दी के लिए भाजपा और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच सीधा टकराव होगा।

लोकसभा चुनावों के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड की जीत के बाद भाजपा को भरोसा है कि प्रधानमंत्री फिर एक बार राजधानी में भी जीत की नैया के खेवनहार बन सकते हैं, लेकिन अन्य राज्यों की तुलना में दिल्ली में आप की भाजपा को अब तक की सबसे कठिन चुनौती होगी। यहां महत्वपूर्ण होगा कि हम दोनों जनमत सर्वेक्षणों का आकलन जान लें। एबीपी-नीलसन अनुमानों के अनुसार 70 सदस्यीय विधान सभा में इस बार भाजपा को 45 सीटें मिल सकती हैं। वहीं सर्वेक्षण में आप को 17 और कांग्रेस को 7 सीटें मिलती बताई जा रही हैं। अन्य के खाते में मात्र एक सीट की भविष्यवाणी की जा रही है।

इसी तरह से इंडिया टुडे-सिसरो के सर्वेक्षण में जहां भाजपा को 34 से 40 सीटें मिलने का दावा किया जा रहा है तो आप के खाते में 25 से 31 सीटें मिलने की बात कही जा रही है। वहीं कांग्रेस को मात्र तीन से पांच सीटें मिलने की बात कही जा रही है और अन्य के खाते में मात्र दो सीटें जाने की बात कही जा रही है। पर दोनों ही सर्वेक्षणों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अंत में मुकाबला नरेन्द्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल होने वाला है। आम चुनावों में अभूतपूर्व जीत हासिल करने वाली भाजपा के पास विधानसभा चुनावों में नेतृत्व करने वाले मुख्यमंत्री पद के दावेदार की कमी है।   

पार्टी की ओर से डॉ. हर्षवर्धन पिछले चुनावों में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार समझे जाते थे, लेकिन वे इस बार केन्द्र सरकार में मंत्री हैं। भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं है और पार्टी का सारा जोर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर होगा जबकि आप की ओर अरविंद केजरीवाल इस पद के लिए एक मात्र मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। इन दोनों ही सर्वेक्षणों से यह संकेत मिलता है कि दिल्ली के लोगों को केजरीवाल पर भरोसा है। केजरीवाल के साथ लाभ यह है कि केजरीवाल ही मात्र ऐसे आदमी हैं, जो कि दिल्ली में भाजपा से लोहा लेने की क्षमता रखते हैं।    

इन चुनावों में मोदी के सात महीने और केजरीवाल के 49 दिनों का राज भी बहस का एक बड़ा मुद्‍दा होगा। जनमत सर्वेक्षणों से यह बात साफ झलकती है कि दोनों दलों के लिए यह तुलना एक निर्णायक बिंदु होने वाला है। हालांकि केजरीवाल पर तमाम आरोप लगाए गए और उन्हें भगोड़ा आदि कहा गया लेकिन इस बात से भी इनकार करना मुश्किल होगा कि अपने 49 दिनों के कार्यकाल में केजरीवाल दिल्ली में कुछ अंतर पैदा करने में सफल हुए हैं। एबीपी-नीलसन सर्वेक्षण के मुताबिक 65 फीसदी सर्वेक्षित लोगों ने माना कि मात्र 49 दिनों के कामों के आधार पर ही केजरीवाल के काम को अच्छा या बहुत अच्छा करार दिया जा सकता है।

जबकि इंडिया टुडे-सिसरो के सर्वेक्षण में कहा गया है कि 35 फीसदी जवाब देने वालों ने माना कि केजरीवाल सरकार के 49 दिन उम्मीदों से बढ़कर थे जबकि 32 प्रतिशत लोगों का मानना है कि आप का राज उम्मीदों के अनुरूप ही था। इसी तरह से मोदी सरकार के प्रदर्शन को सराहा है। इस मामले में 34 फीसदी लोगों का कहना है कि मोदी का प्रदर्शन उम्मीदों से बढ़कर है जबकि 33 प्रतिशत का मानना है कि प्रधानमंत्री का कामकाज उम्मीदों के अनुसार है। जनमत संग्रह के उत्तरदाताओं ने माना है कि केजरीवाल ने दिल्ली में भ्रष्टाचार को कम करने में सफलता पाई और बिजली, पानी की लागतों में कमी करने का भी काम किया है। इससे लगता है कि मोदी की तुलना में वे बीस साबित होंगे लेकिन यह अंतर क्या वोटों में बदल सकेगा या नहीं, इसका नतीजा तो मतदान के बाद ही जाहिर हो सकेगा।

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