मनोज वर्मा, नई दिल्ली। विधानसभा चुनाव परिणामों के साथ ही नेतृत्व को लेकर भाजपा में दूसरी पंक्ति के नेताओं के बीच घमासान शुरू हो गया है। संगठन में वसुंधरा राजे लगभग अलग थलग पड़ गई हैं। लोकसभा में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी के बाद नंबर दो की सीट पर काबिज विजय कुमार मल्होत्रा को भी किनारे लगाने की बिसात बिछाई जा रही है। उधर, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस बार मुख्यमंत्री समर्थक भी सरकार गठन में अपनी पकड़ बनाने में जुटे हैं। लिहाजा मुख्यमंत्री विरोधी नेता बेचैन हैं।
इस बीच नतीजों से हैरान भाजपा में संगठन स्तर पर व्यापक फेरदबल की तैयारी शुरू हो गई है। यह मांग भी जोर पकड़ रही है कि केंद्र से लेकर राज्यों में ऐसे नेताओं को ही सरकार और संगठन की बागडोर सौंपी जाए जिनका कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद हो। असल में आडवाणी पीएम इन वेटिंग में हैं तो दूसरी ओर उनका उत्तराधिकारी बनाने के लिए भाजपा के दूसरी पंक्ति के नेताओं में महाभारत मची है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक पूरे देश में भाजपा के दूसरी पीढ़ी के नेताओं में पद और प्रतिष्ठा को लेकर टकराव सामने आ रहे हैं। सबसे खराब स्थिति राजस्थान में है। राजे के नेतृत्व को लेकर राज्य के छोटे-बड़े नेताओं में बगावत जैसी स्थिति बन गई है।
वसुंधरा राज्य में विपक्ष के नेता के तौर पर पार्टी की कमान अपने हाथ में रखना चाहती हैं लेकिन उनके विरोधी किसी कीमत पर ऐसा नहीं चाहते। जयपुर से लेकर दिल्ली तक शेखावत समर्थक हों या जसवंत सिंह या संघ प्रचारक, राजस्थान के भाजपा नेता वसुंधरा को राज्य की राजनीति से दूर रखने में लगे हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हरिशंकर भाभ़ड़ा ने तो अध्यक्ष राजनाथ सिंह को फोन कर यह सलाह भी दी है कि वसुंधरा को विपक्ष का नेता नहीं बनाया जाए।
आलाकमान की मुश्किल यह है कि वसुंधरा की कार्यशैली के चलते केंद्र में दूसरी पंक्ति के कई भाजपा नेता वसुंधरा को केंद्रीय संगठन में कोई जिम्मेदारी देने के पक्ष में नहीं हैं लेकिन आडवाणी वसुंधरा को एकदम किनारे लगाने के पक्ष में नहीं हैं। कई नेताओं की नजर मल्होत्रा की लोकसभा में उपनेता की कुर्सी पर है। उन्हें दिल्ली विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाने की राजनीति हो रही है।