दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के 5 कारण

रविवार, 8 दिसंबर 2013 (16:25 IST)
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दिल्ली में पिछले 15 सालों से लगातार कांग्रेस की सरकार है और हर बार शीला दीक्षि‍त राज्य की मुख्यमंत्री बनती हैं। इस बार कांग्रेस का पासा पलट गया है और मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित भी हार गई है। एक ओर जहां भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है तो दूसरी ओर आप दूसरे नंबर पर हैं। आप ने कांग्रेस का सफाया कर भाजपा के सामने मुश्किल खड़ी कर दी है।

इस बार अगर कांग्रेस चुनाव हार ई है। कांग्रेस की इस हार के 5 प्रमुख कारण हो सकते हैं।

अगले पन्ने पर क्या महंगाई ले डूबी कांग्रेस को..


1. महंगाई : कांग्रेस की 15 सालों की सरकार ने राज्य की महंगाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। फलों, सब्जियों के दाम तथा रोजमर्रा की जिदंगी में प्रयुक्त होने वाली चीजों के दाम बढ़ने से राज्य के नागरिक काफी परेशान थे। कुछ दिनों पहले वहां 100 रु. किलो प्याज था जिसने लोगों की आंखों में आंसू ला दिए। कांग्रेस सरकार ने महंगाई रोकने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया। महंगाई बढ़ने दी वहां तक भी ठीक था पर जब इसका कारण अन्य राज्यों से आए लोगों पर इसका दोष मढ़ा गया तो वह नाराज हो गए और चुनाव में इसका बदला कांग्रेस के विरोध में मतदान कर लिया।

2. सुरक्षा

पिछले साल दिसंबर में हुई बलात्कार की घटना ने देश व विदेशों को हिलाकर रख दिया था। विरोध के लिए उतरे लोगों पर लाठीचार्ज के बाद शीला सरकार से लोग नाराज हो गए। ज्यादातर लोगों के मन में पुलिस द्वारा की गई निर्दोषों की पिटाई की टीस थी। इस गैंगरेप के बाद भी अपराधी खुलेआम सड़कों पर इस तरह की वारदातों को अंजाम दे रहे थे। 2012 में ही मार्च के महीने में दिल्ली के धौलाकुआं रेप की घटना के बाद मुख्यमंत्री शीला दीक्षि‍त का बयान, 'लड़कियां छोटे कपड़े पहनने और रात में निकलने के कारण ही रेप की शि‍कार हो रही हैं', ने राज्य के अपराधि‍यों को बढ़ावा दिया और महिलाओं में असुरक्षा की भावना ने जन्म लिया। यही भावना कांग्रेस की हार का कारण बनी।

3. विकास का अभाव : दिल्ली को देखकर ऐसा लगता है कि यहां पर सबसे ज्यादा विकास हुआ है। लेकिन जब आप दिल्ली के सीमावर्ती इलाकों तथा पिछडे़ इलाकों में जाएंगे तो विकास का असली चेहरा सामने आएगा। राज्य की जनता को न सस्ती बिजली मिली न पीने का पानी। दिल्ली के कुछ इलाके ऐसे हैं, जहां सांस भी नहीं ली जा सकती। मंगोलपुरी, मायापुरी, नारायणा विहार, जनकपुरी, विकासपुरी व उत्तम नगर सहित आजाद नगर क्षेत्र के कई जगहें ऐसे हैं, जहां एक पल का भी गुजारा नहीं किया जा सकता। दिल्ली की यह दशा लोगों से देखी नहीं और वे मतदान के लिए आगे आए।

4. सत्ता विरोधी लहर : राज्य की जनता इस बार पूरी तरह बदलाव के मूड में दिखाई दे रही थी। कांग्रेस के बयानवीरों ने उसकी परशानियों में इजाफा ही किया। चुनाव परिणाम स्पष्ट रूप से बता रहे हैं कि दिल्ली में 15 नहीं 25 सालों का एंटी कंबेंसी फेक्टर काम कर रहा था। जनता शीला दीक्षित के साथ ही मनमोहन सिंह से भी नाराज चल रही थी और उसने लोकसभा चुनाव तक रूकने की बजाए विधानसभा चुनाव में ही हिसाब बराबर कर दिया।


5. प्रत्याशी नहीं, नेता को वोट : इस चुनाव में लोगों ने उम्मीदवार की छवि नहीं पार्टी को देखकर वोट दिया। उनके सामने प्रत्याशी नहीं शीला, हर्षवर्धन और केजरीवाल के चेहरे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था लोग विधायक नहीं मुख्यमंत्री को चुन रहे हैं। इसका फायदा कई कमजोर उम्मीदवारों को मिला तो कई कद्दावर नेता भी इसी फैक्टर के कारण चुनाव हार गए। शीला लोगों की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकी और कांग्रेस के इस चुनाव में सुपड़े साफ हो गए।

1. महंगाई : कांग्रेस की 15 सालों की सरकार ने राज्य की महंगाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। फलों, सब्जियों के दाम तथा रोजमर्रा की जिदंगी में प्रयुक्त होने वाली चीजों के दाम बढ़ने से राज्य के नागरिक काफी परेशान थे। कुछ दिनों पहले वहां 100 रु. किलो प्याज था जिसने लोगों की आंखों में आंसू ला दिए।

कांग्रेस सरकार ने महंगाई रोकने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया। महंगाई बढ़ने दी वहां तक भी ठीक था पर जब इसका कारण अन्य राज्यों से आए लोगों पर इसका दोष मढ़ा गया तो वह नाराज हो गए और चुनाव में इसका बदला कांग्रेस के विरोध में मतदान कर लिया।

2. सुरक्षा : पिछले साल दिसंबर में हुई बलात्कार की घटना ने देश व विदेशों को हिलाकर रख दिया था। विरोध के लिए उतरे लोगों पर लाठीचार्ज के बाद शीला सरकार से लोग नाराज हो गए। ज्यादातर लोगों के मन में पुलिस द्वारा की गई निर्दोषों की पिटाई की टीस थी। इस गैंगरेप के बाद भी अपराधी खुलेआम सड़कों पर इस तरह की वारदातों को अंजाम दे रहे थे।

2012 में ही मार्च के महीने में दिल्ली के धौलाकुआं रेप की घटना के बाद मुख्यमंत्री शीला दीक्षि‍त का बयान, 'लड़कियां छोटे कपड़े पहनने और रात में निकलने के कारण ही रेप की शि‍कार हो रही हैं', ने राज्य के अपराधि‍यों को बढ़ावा दिया और महिलाओं में असुरक्षा की भावना ने जन्म लिया। यही भावना कांग्रेस की हार का कारण बनी।

3. विकास का अभाव : दिल्ली को देखकर ऐसा लगता है कि यहां पर सबसे ज्यादा विकास हुआ है। लेकिन जब आप दिल्ली के सीमावर्ती इलाकों तथा पिछडे़ इलाकों में जाएंगे तो विकास का असली चेहरा सामने आएगा। राज्य की जनता को न सस्ती बिजली मिली न पीने का पानी।

दिल्ली के कुछ इलाके ऐसे हैं, जहां सांस भी नहीं ली जा सकती। मंगोलपुरी, मायापुरी, नारायणा विहार, जनकपुरी, विकासपुरी व उत्तम नगर सहित आजाद नगर क्षेत्र के कई जगहें ऐसे हैं, जहां एक पल का भी गुजारा नहीं किया जा सकता। दिल्ली की यह दशा लोगों से देखी नहीं और वे मतदान के लिए आगे आए।

4. सत्ता विरोधी लहर : राज्य की जनता इस बार पूरी तरह बदलाव के मूड में दिखाई दे रही थी। कांग्रेस के बयानवीरों ने उसकी परशानियों में इजाफा ही किया। चुनाव परिणाम स्पष्ट रूप से बता रहे हैं कि दिल्ली में 15 नहीं 25 सालों का एंटी कंबेंसी फेक्टर काम कर रहा था।

जनता शीला दीक्षित के साथ ही मनमोहन सिंह से भी नाराज चल रही थी और उसने लोकसभा चुनाव तक रूकने की बजाए विधानसभा चुनाव में ही हिसाब बराबर कर दिया।

5. प्रत्याशी नहीं, नेता को वोट : इस चुनाव में लोगों ने उम्मीदवार की छवि नहीं पार्टी को देखकर वोट दिया। उनके सामने प्रत्याशी नहीं शीला, हर्षवर्धन और केजरीवाल के चेहरे थे।

ऐसा प्रतीत हो रहा था लोग विधायक नहीं मुख्यमंत्री को चुन रहे हैं। इसका फायदा कई कमजोर उम्मीदवारों को मिला तो कई कद्दावर नेता भी इसी फैक्टर के कारण चुनाव हार गए। शीला लोगों की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकी और कांग्रेस के इस चुनाव में सुपड़े साफ हो गए।

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