‘धर्म’ भुलाकर जो लोग दंगों में एक दूसरे के लिए बन गए ‘फरिश्ते’
शनिवार, 29 फ़रवरी 2020 (16:57 IST)
दिल्ली जिस वक्त दंगों की आग में झुलस रही थी, ठीक उसी वक्त कुछ ऐसे लोग भी थे जो एक दूसरे की जान बचाने के लिए फरिश्ते बन गए। हिंदू हो या मुस्लिम नफरत की इस आग के बीच सभी ने एक दूसरे की मदद कर सौहार्द का पैगाम दिया। जानते हैं ऐसी ही कुछ कहानियां।
अंतिम संस्कार में मुस्लिमों ने की मदद
अपने परिवार को पालने के लिए 20 साल के दिलबर कुछ ही महीने पहले उत्तराखंड से दिल्ली आए थे। लेकिन वे दिल्ली दंगों के शिकार हो गए। दंगाइयों ने दिलबर को बेरहमी से मारा और फिर जला दिया। दिलबर के शव को उत्तराखंड ले जाने के लिए परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे। उन्होंने अंतिम संस्कार दिल्ली में ही करने का फैसला किया। उसके अंतिम संस्कार के लिए भी कई मुस्लिमों ने आर्थिक मदद दी।
मार्शल की सूझबूझ से बची 20 जान
खजूरी चौक से गुजर रही एक बस को दंगाइयों ने घेर लिया। करीब 100 से ज्यादा दंगाइयों ने बस को साइड में लगाने की बात की। वे बस में आग लगाने की तैयारी में थे। लेकिन मार्शल गुलशन कुमार दंगाइयों को बातों में उलझाते रहे और इसी दौरान बस ड्राइवर बस को धीमे धीमे आगे चलाता रहा। मार्शल ने दंगाइयों को कहा कि वे बस को साइड में लगाते हैं, यह कहकर वे एक यूटर्न तक पहुंच गए। वहां से इसके पहले कि दंगाई कुछ समझ पाते बस को यूटर्न करते ही तेज गति से भगा दी। और शास्त्री पार्क रेड लाइट ले आए।
और हीरो बन गए एसपी
यूपी पुलिस के एसपी नीरज जादौन नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के हिंसा के दौरान हीरो बनकर उभरे हैं। उन्होंने दंगे में कई परिवारों को बचाया। दंगे के वक्त 25 फरवरी को नीरज दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर पट्रोलिंग कर रहे थे। उसी वक्त उन्हें करीब 200 मीटर दूर गोली चलने की आवाज सुनाई दी। जिस जगह गोली चली, वह इलाका दिल्ली के करावल नगर में था। उन्होंने देखा कि 40 से 50 लोगों की भीड़ गाड़ियों में आग लगा रही है। उनमें से एक पेट्रोल बम लेकर एक घर में घुस गया। नीरज ने तुरंत बॉर्डर पार करते हुए दंगाइयों को रोक लिया और वहां से खदेड दिया।
यह गांव बना भाईचारे की मिसाल
करीब 500 साल पुराना घोंडा गांव में गुर्जर और ब्राह्मण रहते हैं। यहां ठाकुर और कुम्हार भी हैं। इन्हीं के बीच करीब 10 मुस्लिम परिवार भी यहां कई पीढ़ियों से हैं। ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले पंकज शर्मा ने बताया कि मीडिया आई थी गांव के हालचाल जानने के लिए। उनके बुलाने पर हाजी जुबैर, हाजी इस्लामुद्दीन, मुजम्मिल और राशिद समेत कई लोग घरों से बाहर आए। उन्होंने बताया कि पूरे गांव में करीब 10 परिवार तो कई पुश्तों से रह रहे हैं। करीब 100 फैमिली किराए पर रहती हैं, लेकिन गांव में एक भी मुस्लिम को किसी ने हाथ नहीं लगाया। दंगा फैलाने की फिराक में कुछ बाहरी लोग झुंड में घूम रहे थे,लेकिन गांव के लोगों ने उन्हें खदेड दिया।