Dhanteras 2024: धनतेरस पूजा और खरीदारी के शुभ मुहूर्त और सबसे श्रेष्ठ योग, पूजन विधि के साथ

WD Feature Desk

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024 (00:02 IST)
Dhanteras 2024 Puja Date time: दिवाली के पांच दिवसीय उत्सव में धनतेरस पहला दिन होता है। इस बार 29 अक्टूबर 2024, दिन मंगलवार को धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन भगवान धनवंतरी, कुबेर देवता और यम देव की पूजा करते हैं। इसी दिन मृत्यु के देवता यमराज के निमित्त घर के बाहर दीया जलाया जाता है, जिसे यम दीपम कहा जाता है। जानिए इस दिन पूजा और खरीदारी के शुभ मुहूर्त।
धनतेरस के शुभ मुहूर्त 29 अक्टूबर 2024:-
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ: 29 अक्टूबर 2024 सुबह 10:31 से।
त्रयोदशी तिथि समाप्त: 30 अक्टूबर 2024 अपराह्न 01:15 पर।
 
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त: शाम को 06:31 रात्रि 08:13 तक।
खरीदारी का अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:42 से 12:27 तक।
खरीदारी का विजय मुहूर्त: दोपहर 01:56 से 02:40 तक।
 
धनतेरस के शुभ योग: 
त्रिपुष्कर योग: सुबह 06:31 से 10:31 तक। 
अमृत काल: सुबह 10:25 से 12:13 तक।
धता योग: शाम 06:34 तक।
Bhagwan Dhanwantari
धनतेरस की पूजा विधि | Dhanteras puja vidhi:-
- इस दिन प्रात: उठकर नित्यकर्म से निवृ‍त्त होकर पूजा की तैयारी करें। घर के ईशान कोण में ही पूजा करें। पूजा के समय हमारा मुंह ईशान, पूर्व या उत्तर में होना चाहिए।
- पूजन के समय पंचदेव की स्थापना जरूर करें। सूर्यदेव, श्रीगणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु को पंचदेव कहा गया है। पूजा के समय सभी एकत्रित होकर पूजा करें। पूजा के दौरान किसी भी प्रकार शोर न करें।
- इस दिन धन्वंतरि देव की षोडशोपचार पूजा करना चाहिए। अर्थात 16 क्रियाओं से पूजा करें। पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए।
- इसके बाद धन्वं‍तरि देव के सामने धूप, दीप जलाएं। फिर उनके के मस्तक पर हलदी कुंकू, चंदन और चावल लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं।
- पूजन में अनामिका अंगुली गंध अर्थात चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी आदिलगाना चाहिए। इसी तरह उपरोक्त षोडशोपचार की सभी सामग्री से पूजा करें। पूजा करते वक्त उनके मंत्र का जाप करें।
- पूजा करने के बाद प्रसाद चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है। प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।
- अंत में उनकी आरती करके नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन किया जाता है।
- मुख्‍य पूजा के बाद अब मुख्य द्वार या आंगन में प्रदोष काल में दीये जलाएं। एक दीया यम के नाम का भी जलाएं। रात्रि में घर के सभी कोने में भी दीए जलाएं।

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