आज के युवा और विपश्यना

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- सुरेश व सुशील ताम्रकर

गत दिनों भोपाल के धम्मपाल विपश्यना केन्द्र पर दस दिवसीय एक शिविर में हमारे साथ युवाओं की भी अच्छी खासी संख्या थी। शिविर की समाप्ति पर जब मौन व्रत खुला तो युवा वर्ग से बात करके यह जानने का मन हुआ कि क्या सोचकर ये युवा इस विद्या की ओर आकर्षित होते हैं। ये युवा पहली बार तो ऐसे शिविरों में निसंदेह किसी से प्रेरित होकर ही आते होंगे। पर वे युवा जो यहाँ बार-बार आते हैं, उनका क्या सोच है, उनके मन में क्या चल रहा है?

इसी तारतम्य में उनसे हमारी चर्चा छिड़ी, तो यह पता चला कि वे अपने अंदर हो रहे सकारात्मक परिवर्तन को बढ़ते देखकर, अपने उत्साह में वृद्धि होते देखकर और अपने समझने व समझाने की क्षमता का इजाफा होते देखकर यहाँ आते हैं। आज का युवा परिणाम चाहता है, वह अब बदलाव की चर्चाओं से ऊबने लगा है, नैतिक मूल्यों की चर्चाओं से ऊबने लगा है। अब वह नैतिकता को जीवन में उतरते देखना चाहता है। साथ ही चाहता है कि हमारी कथनी और करनी में समानता आए। विपश्यना उसे बदलाव का कोरा आश्वासन नहीं देती, सचमुच बदलती भी है।

आज के युवा उत्साह से भरे हुए हैं। जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना कैसे करें जब वे उनके सम्मुख होती हैं? आज का युवा स्वयं उनसे निपटने का कौशल चाहता है। विपश्यना उनके इस ध्येय में सहायक बनती है, उन्हें मार्ग दिखाती है। ये सब किसी की कृपा या अंधविश्वास से नहीं वरन अपनी मेहनत से, अपने पुरुषार्थ से होता है।

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पाँचवीं बार विपश्यना के शिविर में भाग ले रहा शाश्वत बेंगलुरू में डिजाइन में पीजी के लिए अध्यनरत है। साथ ही एक मल्टीनेशनल कंपनी में 'जॉब' भी करता है। वह अपनी मम्मी के साथ शिविर में शामिल हुआ था।

शिविर समापन पर शांत एवं आत्मविश्वास से लबरेज नजर आ रहा था। क्या रहस्य है जो तुम बार-बार समय निकालकर ऐसे शिविरों में आते हो? वह बड़े शांत और सधे हुए लहजे में कहने लगा-

...अंकल कार्य की अधिकता अब मुझे बोझ नहीं लगती। मैं जो तनख्वाह पाता हूँ ... मन करता है उससे कम नहीं वरन ज्यादा ही काम करके दिखाऊँ। मेरे अधिकारी मुझे अब चुनौती भरे कार्य सहज ही सौंप देते हैं। ...और ऐसे काम करने से मेरा आत्मविश्वास बढ़ता है... एवं बढ़ता है कंपनी में मेरा कद। अब सफलता के लिए शॉर्टकट अपनाने की इच्छा नहीं होती।

विपश्यना ने मुझे जीवन को सकारात्मकता से जीने की कला सिखा दी है। मन अधिक से अधिक समता में कैसे रहे मैं इसका अभ्यास इस साधना के द्वारा करता हूँ... एवं सचमुच ऐसा होते हुए पाता भी हूँ। अतः इस साधना में और अधिक पकने के लिए समय निकालकर यहाँ चला आता हूँ। यहाँ आकर मुझे आत्मबल मिलता है..। क्रोध पर भी पहले से अधिक नियंत्रण होने लगा है। क्रोध की वजह से होने वाले नुकसान कम होने लगे हैं। मैं तो फायदे में हूँ ही मुझमें आ रहे बदलावों से मेरे साथी सहयोगी भी फायदे में हैं। मेरे अधिकारी भी प्रभावित हैं।

तीस वर्षीय विशाल दवाइयाँ बनाने वाली मल्टीनेशनल कंपनी में एमआर है। इस समय वह पाँढुर्ना मध्यप्रदेश में कार्यरत है। यह उसका दूसरा शिविर था। उसने बताया मेरा जॉब दूसरों के समक्ष अपनी बात को ठीक से प्रस्तुत करने का है। कम से कम समय में उन्हें अपनी बात कैसे समझा सकूँ। इस कार्य के लिए आत्मविश्वास और समझा पाने की क्षमता का होना बहुत जरूरी है। ..विपश्यना के इन शिविरों से मुझमें इन गुणों का विकास होते हुए पाता हूँ ।... पहले आत्मविश्वास विकसित करो ऐसा सब कहते थे।...पर करूँ कैसे यह कोई नहीं बताता था। विपश्यना करने के बाद मेरे आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है।

नूतन कुमार एक आरटीओ एजेंट हैं, वे तीसरी बार विपश्यना शिविर में भाग ले रहे थे।...कहते हैं पहले मैं अपने घर का एक नाकारा सदस्य था। पिता मेरे भविष्य को लेकर चिंतित थे।...अपने व्यवहार में कमजोरियों के चलते हर बार असफलता का स्वाद चखते-चखते निराश होने लगा था। ...इसका जिम्मेदार मैं औरों को मानता था।

विपश्यना ने मुझे जिम्मेदार बनना सिखाया है। अपने काम अब मैं अधिक कुशलता एवं शीघ्रता से निपटाने लगा हूँ। ...अब मैं अपने आप को सुधार सकता हूँ, दूसरों के भरोसे नहीं। ...विपश्यना अंधविश्वास से कोसों दूर है। इसकी आशुफलदायी प्रकृति मुझे आकर्षित करती है। पहले से मेरा कार्य बढ़ा है, घर में मेरा कद और सम्मान भी बढ़ा है। क्या इतना काफी नहीं... कहकर वह मुस्कुरा उठा। उसका आत्मविश्वास उसके चेहरे पर साफ दमक रहा था।

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