भावातीत ध्यान योग की प्रक्रिया

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जैन मुनि युवाचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार मनुष्य का जीवन व्याधि और उपाधि इन दो दिशाओं में चलता है। व्याधि का तात्पर्य शारीरिक कष्ट और उपाधि का भावनात्मक कष्ट है और यह तीनों कभी-कभी एक साथ होते हैं। इन्हीं का तोड़ है भावातीत ध्यान।

ध्यान की प्रक्रिया
- सबसे पहले शांत चित्त होकर शरीर ढीला करके बिल्कुल सीधे होकर बैठें।

- अपनी एक मुट्ठी में कोई पुष्प ले लें।

- जिस भगवान में आपकी आस्था है, उस परम प्रभु का जाप करते रहें।

- मंत्र का उच्चारण आप अपनी क्षमता के अनुसार करें।

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- जिस नाम का उच्चारण पहली बार किया था उसे याद रखें।

- हर बार उसी मंत्र का जाप करें।

- किसी-किसी को शुरू में अहसास होगा कि उनका सिर घूम रहा है ऐसा पहली बार होता है।

- आंख बंद करते ही आपके मन में कई प्रकार के विचारों का सैलाब उमड़ेगा।

- उन विचारों को रोके नहीं, उन्हें आने दें।

- धीरे-धीरे आपका मन अपने आप शांत हो जाएगा। मन की इस अवस्था को ही ध्यान कहते हैं।

घर के कामों से थोड़ा समय निकालकर पहली बार में एक घंटे बैठना मुश्किल है तो आप पहले 15 मिनट बैठें। धीरे-धीरे समय बढ़ाते चली जाएं। जिस कमरे में आप ध्यान करने बैठें, वहां कोई दीप प्रज्वलित करें।

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