युवा वर्ग सीखें विपश्यना

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आज के बच्चे जिन परिस्थितियों में रह रहे हैं उन्हें भयावह कहना ही समीचीन है। अधिकांश लोगों को तो पूर्ण वास्तविकता का ज्ञान ही नहीं है। उन्हें लगता है कि बच्चे आज इस प्रतियोगिता के युग में अपेक्षाओं के बोझ तले तनाव का जीवन जी रहे हैं। इस वास्तविकता का आभासी परिचय आज की सामयिक फिल्म 'थ्री इडियट्स' में भी देखने को मिलता है।

कितने ही किस्से युवाओं की आत्महत्याओं के आए दिन समाचारों में पढ़ने को मिलते हैं। यह सही है कि जो बच्चे अवसादग्रस्त हैं उनमें से कुछ हैं जो जीवन अंत का रास्ता चुनते हैं, बाकी अपने जीवन के अवसाद और कुंठा को जीते हुए हर पल मरते हैं। ये दोनों ही सर्वथा अनुचित है किंतु ये आज के जीवन की विभत्स सच्चाइयाँ हैं।

जो समस्याएँ अभिभावकों को चिंताग्रस्त बनाती हैं, वे हैं बच्चे की पढ़ाई के प्रति अरुचि, अत्यधिक टीवी, कम्प्यूटर का उपयोग, उद्दंडता, क्रोधी स्वभाव, बड़ों का अनादर इत्यादि। इसके लिए एक अचूक रास्ता मुझे मिला, भारत की ही एक पुरातन ध्यान विद्या के रूप में ये है 'विपश्यना'।

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यह विद्या मनुष्य के मन की गहराई से सफाई का काम करती है। मन की एकाग्रता, स्मरण शक्ति और स्थिरता को बढ़ाती है। इस साधना के परिणाम मैंने प्रत्यक्ष अपनी आँखों से अपने विद्यार्थियों के जीवन में देखे हैं। जो विद्यार्थी इस साधना का अभ्यास करते हैं वे हर परिस्थिति में शांत एवं खुश रहते हैं, जीवन की कठिनाइयाँ और विफलता से नहीं घबराते। उनका जीवन के प्रति रुख अतिसकारात्मक हो जाता है।

एकाग्रता, स्मरण शक्ति एवं सोचने की क्षमता विकसित होने के कारण वे अपने प्रयास में अद्भुत सफलता प्राप्त करते हैं। उनका सामाजिक, पारिवारिक व्यवहार सुधरता है। यह परिणाम मैंने और उनके अभिभावकों ने प्रत्यक्ष अनुभव किए हैं।

इस विद्या को सीखने के लिए पूरे भारत वर्ष में समय-समय पर 7 दिवसीय निःशुल्क शिविर (अनेक स्थानों पर) लगाए जाते हैं। यह शिविर पूर्णतः आवासीय होते हैं।

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