दीपावली और महावीर निर्वाणोत्सव

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भगवान महावीर का जीवन ही उनका संदेश है। उनके उपदेश एक खुली किताब की तरह है। वे एक राजा के परिवार में पैदा हुए थे। उनके घर-परिवार में ऐश्वर्य, संपदा की कोई कमी नहीं थी। वे इसका मनचाहा उपभोग कर सकते थे। परंतु युवावस्था में कदम रखते ही उन्होंने संसार की माया-मोह, सुख, ऐश्वर्य और राज्य को छोड़कर दिल दहला देने वाली यातनाओं को सहन किया। सारी सुख-सुविधाओं का मोह छोड़कर वे नंगे पैर पदयात्रा करते रहे।

महावीर स्वामी ने संसाररूपी दावानल के ताप को शांत करने के लिए अहिंसा के उपदेश प्रसा‍रित किए। उनके उपदेशों को जानने-समझने के लिए कोई विशेष प्रयास की जरूरत नहीं। जब भगवान महावीर पावानगरी के मनोहर उद्यान में जाकर विराजमान हो गए और जब चतुर्थकाल पूरा होने में तीन वर्ष और आठ माह बाकी थे। तब कार्तिक अमावस्या के दिन सुबह स्वाति नक्षत्र के दौरान महावीर स्वामी अपने सांसारिक जीवन से मुक्त होकर मोक्षधाम को प्राप्त हो गए।

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उस समय इंद्रादि देवों ने आकर भगवान महावीर के शरीर की पूजा की और पूरी पावानगरी को दीपकों से सजाकर प्रकाशयुक्त कर दिया। उस समय से आज तक यही परंपरा जैन धर्म में चली आ रही है और प्रतिवर्ष दीपमालिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है। उसी दिन शाम को श्री गौतम स्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तब देवताओं ने प्रकट होकर गंधकुटी की रचना की और गौतम स्वामी एवं केवलज्ञान की पूजा करके दीपोत्सव का महत्व बढ़ाया।

इसी उपलक्ष्य में सभी जैन बंधु सायंकाल को दीपक जलाकर पुन: नई बही खातों का मुहूर्त करते हुए भगवान गणेश और माता लक्ष्मीजी का पूजन करने लगे। ऐसा माना जाता है कि बारह गणों के अधिपति गौतम गणधर ही गणेश हैं और सभी विघ्नों के नाशक हैं। उनके द्वारा केवलज्ञान की विभूति की पूजा ही महालक्ष्मी की पूजा है।

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भगवान महावीर के दिव्य-संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए वर्ष-प्रति-वर्ष कार्तिक अमावस्या को दीपक जलाए जाते हैं। मंदिरों, भवनों, कार्यालयों व बाग-बगीचों को दीपकों से सजाया जाता है और भगवान महावीर से कृपा-प्रसाद प्राप्ति हेतु लड्डुओं का नैवेद्य अर्पित कर प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है। इसे निर्वाण लाड़ू कहा जाता है।

आइए, हम भी दिव्य संदेश के प्रतीक रूप में दीपक जलाएँ। लड्डुओं को उनके दिव्य-प्रसाद के रूप में वितरित करें। और भगवान महावीर स्वामी और गौतम गणधर के स्मृतिस्वरूप दीपमालिका पर्व मनाएँ। विश्व में चारों ओर अहिंसा और शांति का संदेश फैलाकर महावीर का निर्वाणोत्सव का मर्म समझें।

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