कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भैया दूज भी कहा जाता है। 21 अक्टूबर, शनिवार को भाई दूज पर्व है। भाई दूज का त्योहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। भाई-बहन के प्रेम को बढ़ाने वाले इस पर्व के दिन बहनें अपने भाइयों को भोजन कराकर तिलक करती हैं और अपने भाई के कल्याण व दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं। भाई भी बहनों को आशीष देकर भेंट देते हैं।
हिन्दी बहुलभाषी शहरों में इसे 'भाई दूज' के नाम से ही जाना जाता है जबकि महाराष्ट्र में इसे भाव-भीज, बंगाल में भाई-फोटा और नेपाल में भाई-टीका के रूप में मनाया जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार यमराज इस दिन अपनी बहन यमुना के घर गए थे और उनकी बहन ने अपने भाई यमराज की पूजा करके उनके लिए मंगल आनंद एवं समृद्धि के लिए कामना की। तभी से सारी बहनें इस दिन अपने भाइयों की रक्षा के लिए यह पूजा करती आई हैं। भाई दूज को 'यम द्वितीया' के नाम से भी जाना जाता है।
भाई दूज की एक पौराणिक कथा यह भी है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण नरकासुर को मारने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के पास गए थे। तब सुभद्रा ने अपने भाई कृष्ण का पारंपरिक रूप से स्वागत किया और उनकी पूजा-आरती की।
पूजा विधान- इस दिन बहनें अपने भाई की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत रखती हैं। सुबह-सुबह स्नान-ध्यान करने के बाद पूजा की थाली सजाकर भाई का तिलक करती हैं और उन्हें बुरी नजरों से बचाने के लिए उनकी आरती उतारती हैं। बदले में भाई भी बहनों के इस अटूट प्यार को देखकर उन्हें उपहार देते हैं।
वस्तुत: इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य है भाई-बहन के मध्य सौमनस्य और सद्भावना का पावन प्रवाह अनवरत प्रवाहित रखना तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना।
टीका लगाने का मुहूर्त-
शुभ चौघड़िया 7.53 से 8.59 तक।
लाभ का चौघड़िया 13.38 से 15.04 तक।
अमृत का चौघड़िया 15.04 से 16.30 तक।
शाम का शुभ समय
लाभ का चौघड़िया 17.59 से 19.30 तक।
शुभ का चौघड़िया 21.04 से 22.38 तक।
विजय मुहूर्त में टीका लगाना अतिशुभ रहता है। 11.59 से 12.23 तक इसमें चौघड़िया का विचार नहीं किया जाता है।