धनतेरस 2020 : भगवान धन्वंतरि की पूजा कौन से शुभ मुहूर्त में करें

जानिए भगवान धन्वंतरि की पूजा व गादी बिछाने का मुहूर्त 
 
मत मतांतर से 12 और 13 नवंबर को धनतेरस है। जानिए शुभ मुहूर्त...

इस दिन गादी बिछाने व आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा करने का विधान है। गादी बिछाने व भगवान धन्वंतरि पूजन का मुहूर्त इस प्रकार है-

12 नवंबर की रात्रि 9:30 बजे के बाद से धनतेरस को लेकर खरीदारी की जा सकती है12 नवंबर को खरीदारी के लिए शुभ मुहूर्त रात्रि 11:30 से 1:07 बजे और रात्रि 2:45 से अगले दिन सुबह 5:57 तक है.... 
13 नवंबर को सुबह 8.02 से 9.25 तक लाभ का चौघड़िया
 
13 नवंबर को सुबह 9.25 से 10.48 तक अमृत का चौघड़िया रहेगा
 
13 नवंबर को दोपहर 12.11 से 13.34 तक शुभ का चौघड़िया रहेगा और यह समय गादी बिछाने हेतु उत्तम है।
पूजन हेतु समय 
 
13 नवंबर को चंचल चौघड़िया में 16.19 (4 बजकर 19 मिनट) से 17.42 (5 बजकर 42 मिनट) तक का समय पूजन व दीप जलाने के लिए सबसे अच्छा है। 
 
सुविधानुसार इस समय भी गादी बिछा सकते हैं।
धनतेरस के मौके पर ज्यादातर लोग सोना-चांदी व धन-वैभव अपने घर लाने में ज्यादा तत्परता दिखाते हैं और सेहत को ही भूल जाते हैं। असली सुख निरोगी काया है जिसे पाने के बाद ही कुछ अन्य सुख का लाभ महसूस किया जा सकता है। होना तो यह चाहिए कि धनतेरस पर आरोग्य के देवता धन्वंतरि की पूजा-अर्चना की जाए और दैनिक जीवन में संयम-नियम आदि का पालन किया जाए।
स्वास्थ्य है तो लक्ष्मी भी होगी
 
जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार भगवान धन्वंतरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालांकि धन की देवी हैं, परंतु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य और लंबी आयु भी चाहिए। यही कारण है कि दीपावली के पहले यानी धनतेरस से ही दीपमालाएं सजने लगती हैं।
भगवान धन्वंतरि का जन्म त्रयोदशी के दिन
 
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वंतरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को 'धनतेरस' के रूप में मनाया जाता है। धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वंतरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा है, विशेषकर कलश खरीदना शुभ माना जाता है।
 
इस दिन खरीदी करने से उसमें 13 गुना वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिये के बीज खरीदकर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों या खेतों में बोते हैं।

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