Diwali Date Muhurat 2024: दिवाली पर लक्ष्मी माता की पूजा रात्रिकाल की अमावस्या को होती है। अमावस्या के दिन ही श्रीराम का अयोध्या में दीप जलाकर स्वागत किया गया था। 31 तारीख 2024 गुरुवार के दिन ही प्रदोषकाल की अमावस्या के साथ ही रात्रिकालिन अमावस्या रहेगी। इस मान से 31 अक्टूबर को ही दिवाली मनाना उचित माना जा रहा है। आओ जानते हैं कब से कब तक रहेगा प्रदोष काल और रात्रि की पूजा के लिए निशीथ काल का क्या है समय।
1. प्रदोष काल मुहूर्त:- प्रदोष काल सूर्यास्त से 48 मिनट यानी दो घड़ियां तक का समय होता है। दिल्ली टाइम के अनुसार शाम 05:36 होगा सूर्यास्त। इस काल में भी लक्ष्मी पूजा कर सकते हैं। इसे आप गोधूली मुहूर्त मान लें।
2. लक्ष्मी पूजा रात्रि का शुभ मुहूर्त:- शाम 05:32 से 08:51 के बीच। इस काल में सभी गृहस्थ पूजा कर सकते हैं। इस काल में प्रदोष काल सहित अमृत और चर का चौघड़िया भी समाहित है।
3. निशिथ काल मुहूर्त:- मध्यरात्रि 11:39 से 12:31 तक। इस काल में माता काली या माता लक्ष्मी की तांत्रिक पूजा होती है या वे लोग पूजा करते हैं जो किसी विशेष कार्य या प्रयोजन को सिद्ध करना चाहते हैं।
Diwali 2024
31 अक्टूबर 2024 दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजा के शुभ मुहूर्त:-
ब्रह्म मुहूर्त: प्रात: 04:49 से 05:41 तक।
प्रात: संध्या: प्रातः: 05:15 से 06:32 तक।
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:42 से 12:27 तक।
विजयी मुहूर्त: दोपहर 01:55 से 02:39 तक।
गोधूलि मुहूर्त: शाम 05:36 से 06:02 तक।
संध्या पूजा : शाम 05:36 से 06:54 तक।
अमृत काल : शाम 05:32 से 07:20 तक।
31 अक्टूबर 2024 दिवाली के दिन का चौघड़िया:-
लाभ : दोपहर 12:04 से 01:27 के बीच।
अमृत : दोपहर 01:27 से 02:50 के बीच।
शुभ : अपराह्न काल 04:13 से 05:36 के बीच।
अमृत : शाम 05:36 से 07:14 के बीच।
चर : रात्रि 07:14 से 08:51 के बीच।
लक्ष्मी पूजा की विधि:-
नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद माता लक्ष्मी के मूर्ति या चित्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें।
मूर्ति को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करें। कलश में नारियल रखकर कलश की स्थापना करें।
धूप, दीप जलाएं। देवताओं के लिए जलाए गए दीपक को स्वयं कभी नहीं बुझाना चाहिए।
फिर देवी के मस्तक पर हल्दी कुंकू, चंदन और चावल लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं।
पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी) लगाना चाहिए।
पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है।
प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।
अंत में उनकी आरती करके नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन किया जाता है।