Govardhan puja ki kahani: कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा के साथ ही अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है। यह दिवाली के पांच दिनी उत्सव का चौथा पर्व रहता है जो दिवाली के अगले दिन आता है। श्रीकृष्ण के काल के पहले गोवर्धन पूजा नहीं होती थी। अन्नकूट महोत्सव ही मनाया जाता था। गोवर्धन पूजा के पहले इंद्रोत्सव मनाया जाता था। इसी से जुड़ी है गोवर्धन पूजा की कहानी और अन्नकूट महोतस्व की कथा।
अन्नकूट और गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा: द्वापर में अन्नकूट के दिन इंद्र की पूजा करके उनको छप्पन भोग अर्पित किए जाते थे लेकिन ब्रजवासियों ने श्रीकृष्ण के कहने पर उस प्रथा को बंद करके इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे और गोवर्धन को ही छप्पन भोग लगाने लगे। श्रीकृष्ण का कहना था कि जो पर्वत, खेत और गाय हमारा जीवन चला रहे हैं उनका हमें आदर करना और पूजा करना चाहिए।... बाद में गोवर्धन के रूप में भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग लगाने का प्रचलन हुआ।
उस पर्वत के नीचे 7 दिन तक सभी ग्रामिणों के साथ ही गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। फिर ब्रह्माजी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्री हरि विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म ले लिया है, उनसे बैर लेना उचित नहीं है। यह जानकर इन्द्रदेव ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा-याचना की। भगवान श्रीकृष्ण ने 7वें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव 'अन्नकूट' के नाम से भी मनाया जाने लगा।