दीपावली मतलब मस्ती का पैकेज

ND
ND
स्वागत की परंपरा हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान है। अपने घर पधारने वाले हर अतिथि का स्वागत-सत्कार हम बड़ी सेवा भावना से करते हैं। और जब हमारे घर में पधारने वाली अतिथि देवी लक्ष्मी हो तो भला उनके स्वागत में कोई कमी कैसे रह सकती है?

हिंदू मान्यताओं के अनुसार दीपावली के शुभ दिन लक्ष्मी हमारे घर पधारती है तथा हमें धन-धान्य से संपन्न करती है। देवी लक्ष्मी के आगमन की खुशी में हम अपने घर आँगन को बड़ी ही शिद्दत से सजाते हैं तथा यही दुआ करते हैं कि माँ लक्ष्मी का आशीष सदा हम पर बना रहे।

द‍ीपावली है मस्ती का पैकेज :
हर भारतीय त्योहार का मूल भाव प्रेम व खुशियों का आदान-प्रदान है ‍फिर भले ही इनको मनाने के हमारे तरीके भिन्न-भिन्न ही क्यों न हो। दीपावली भी एक ऐसा त्योहार है, जिसे पूरा परिवार एकसाथ मिल-जुलकर मनाता है। हमारे अपने कहीं भी हो इस दिन हमारा प्यार उन्हें जरूर हमारे पास खींच लाता है और उनके आगमन से ही हमारे घर में खुशियों का मेला सा लग जाता है।

पूरे 5 दिन तक मनाए जाने वाला यह त्योहार पूरी तरह से मस्ती का एक पैकेज होता है, जिसमें अपने पूरे परिवार के साथ मिल-बैठकर हम अपनी खुशियाँ व अनुभव बाँटते हैं तो वहीं आतिशबाजी कर रोशन रास्तों की तरह अपने मन के बैर को भी प्रेम के दियों से रोशन कर लेते हैं।

5 दिन, 5 त्योहार और 5 भाव :
धनतेरस :
दीपावली त्योहारों की एक श्रृंखला होती है। दीपावली के दो दिन पूर्व अर्थात कार्तिक मास की त्रयोदशी को 'धनतेरस' कहा जाता है। इस दिन धन्वन्तरि की पूजा करने का विशेष महत्व है। धनतेरस के दिन लोग विशेष तौर पर नए बर्तनों व आभूषणों की खरीददारी करते हैं।

मूल भाव : भगवान धनवन्तरि की पूजा करना आरोग्य की कामना करना है। इसके पीछे मूल भाव हमें अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करना है।

घर-परिवार के प्रति हमारी कुछ जिम्मेदारियाँ होती हैं। त्योहार हमें समय-समय इस जिम्मेदारी का आभास कराते हैं। धनतेरस के दिन बर्तन व आभूषण खरीदना महज एक रिवाज है जबकि इसका मूल भाव घर-गृहस्थी के प्रति हमें हमारी जिम्मेदारियों का आभास कराना है।

रूप चौदस :
धनतेरस के अगले दिन 'नरक चौदस' होती है, जिसे 'रूप चौदस' भी कहा जाता है। इस दिन ब्रह्म मुहुर्त में उठकर स्नान करने का तथा उगते सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व होता है। रूप चौदस के दिन रूप-लावण्य को निखारने के लिए तरह-तरह के उबटन आदि लगाते हैं। इस दिन घर के दरवाजे के बाहर तेल का एक दीपक जलाया जाता है, जिसे यम दीपक कहा जाता है।

मूल भाव : मनुष्य के लिए तन और मन दोनों की शुद्धि करना जरूरी होता है। 'रूप चौदस' का अभिप्राय केवल सज-धजकर केवल शरीर की मलिनता को दूर करना ही नहीं है बल्कि अपने मन में विकारों को भी दूर करना है।

दीपावली :
कार्तिक मास की अमावस्या को रोशनी के पर्व दीपावली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी, गणेश व सरस्वती की पूजा की जाती है तथा रोशनी के प्रतीक दीयों को जलाया जाता है।

मूल भाव : जिस तरह हम अमावस्या की काली रात के अंधेरे को दिए की रोशनी से दूर करते हैं। उसी प्रकार हमें अपने मन में घर कब्जा जमाए बैठे बैर व अज्ञानता के अंधेरे के काले साये को भी प्रेम व ज्ञान के प्रकाश रूपी दिए से दूर करना चाहिए।

गोर्वधन पूजा :
दीपावली के अगले दिन गोर्वधन पूजा की जाती है ‍तथा अन्नकूट का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोर्वधन पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठाया था। इस दिन गाय की पूजा का भी महत्व है।

मूल भाव : हमें संसार के हर प्राणी से प्रेम करना चाहिए फिर चाहे वह जानवर ही क्यों न हो। आज जिस तरह से मनुष्य अपनी बढ़ती आवश्यकताओं व जीभ के चटखारों के लिए जानवरों का शिकार कर रहा है। उससे इनके अस्तित्व पर ही संकट मँडरा रहा है। वहीं हमारे इसी देश में साल के एक दिन जानवरों की पूजा भी की जाती है। निष्कर्षत: इस त्योहार का मूल भाव प्राणी मात्र के प्रति प्रेम की भावना को विकसित करना है।

भाई दूज :
त्योहारों की इस श्रृंखला का अंतिम त्योहार 'भाई-दूज' का पर्व है। यह भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक त्योहार है। जिस तरह रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहन को घर बुलाता है। उसी तरह भाई-दूज के दिन बहन अपने भाई को अपने घर आमंत्रित करती है।

मूल भाव : भाई-बहन का रिश्ता बचपन से लेकर बुढ़ापे तक साथ निभाया जाने वाला रिश्ता है। यह बंधन प्रेम की मजबूत डोर से बँधा बंधन है। मेल-मिलाप इस रिश्ते की प्रगाढ़ता को लंबी उम्र देता है। अत: बहन और भाई का मेल-मिलाप ही भाई-दूज का मूल भाव है।

प्रेम से मनाएँ दीपावली :
हर त्योहार का महत्व इसी बात में है कि हम उसे किस तरह से मनाते हैं। यदि हम त्योहार इसलिए मनाते हैं कि हमें दूसरों के सामने दिखावा करना होता है या हमारा लक्ष्य दूसरों को परेशान करना है तो माफ कीजिए यह त्योहार आपके लिए नहीं है। यदि आप बीच सड़क पर पटाखे इसलिए जलाते हैं ताकि राहगीरों को परेशानी हो तो आपका मौज-मस्ती का यह तरीका बिल्कुल गलत है।

यह आदर-सत्कार की परंपरा का प्रतीक त्योहार है न कि विवादों की उपज का। यदि आप इस दिन सारे बैर-भाव भुलाकर अपने दुश्मन का आदर-सत्कार भी प्रेम की भावना के साथ करेंगे, तो आप सही अर्थों में दीपावली मनाने के औचित्य को समझ जाएँगे। क्यों न आप और हम ही आदर-सत्कार की मिसाल बनें ताकि हमारा अनुसरण कर हमारी आगामी पीढ़ी भी इसी परंपरा को अपनाएँ।

वेबदुनिया पर पढ़ें