यह पर्व कार्तिक के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (चौदस) को मनाया जाता है। इस पर्व का संबंध स्वच्छता से है। इसीलिए इस दिन लोग घरों की सफाई कर कूड़ा-कचरा बाहर फेंकते हैं तथा लिपाई-पुताई कर स्वच्छ करते हैं।
इस दिन शारीरिक स्वच्छता का भी विशेष महत्व है। अतः सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल-उबटन लगाकर भली-भाँति स्नान करना चाहिए। कहा जाता है कि जो लोग इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान नहीं करते, वर्षभर उनके शुभ कार्यों का नाश होता है अर्थात दरिद्रता और संकट वर्षभर उनका पीछा करते रहते हैं।
पौराणिक महत्व
भगवान वामन ने राजा बलि की पृथ्वी तथा शरीर को तीन पगों में इसी दिन नाप लिया था।
आज ही के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने नरकासुर नामक राक्षस को मारकर पृथ्वी को भार मुक्त किया था।
इस व्रत को करने से नरक की प्राप्ति नहीं होती।
रामभक्त हनुमानजी का जन्म भी आज ही हुआ था।
रूप चतुर्दशी स्नान
चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्दशी को प्रातः शौच, दंत धावन से निवृत्त होकर निम्न मंत्र का संकल्प कर शरीर में तिल का तेल आदि का उबटन लगाएँ-
यमलोकदर्शनाभावकामोऽहमभ्यंगस्नानं करिष्ये।
हल से उखड़ी हुई मिट्टी का ढेला और अपामार्ग (ऊंगा) वनस्पति को अपने मस्तक पर से घुमाकर शुद्ध स्नान करें।
यम दीपदान एवं यम तर्पण
दीपदान
सायंकाल प्रदोष समय तिल्ली के तेल से भरकर 14 दीपक एक थाल में सजाएँ।