दिल की बात खुलकर कहें

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डिप्रेशन एक ऐसी बीमारी है जो इंसान को अंदर से कमजोर कर देती है, मन की उदासीनता (डिप्रेशन) दिन-प्रतिदिन हमारे समाज में बढ़ती जा रही है। यह माना जाता है कि अगर आम जनता का सर्वेक्षण किया जाए तो 5-10 प्रतिशत लोग डिप्रेशन से पीड़ित हैं। यह एक कड़वा सच है कि इनमें से दो-तिहाई लोग डिप्रेशन का कोई इलाज नहीं कराते।


ये लोग या तो डिप्रेशन को एक बीमारी न मानकर उदासीनता से भरी जिन्दगी जीते रहते हैं या फिर उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि सही इलाज करने से इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है। डॉ.गौरव गुप्ता के अनुसार आम जनता में डिप्रेशन के बारे में जागरूकता लाने तथा इस बीमारी के बारे में अवधारणाओं को दूर करने की जरूरत है।


डिप्रेशन के लक्षण शुरुआत में समझ नहीं आते, लेकिन अगर ये एक बार घर कर जाएँ तो फिर ये लोगों की जान लेकर ही रहता है। डिप्रेशन ज्यादातर 25 से 45 वर्ष की उम्र के लोगों को प्रभावित करता है, परंतु बच्चों एवं वृद्धावस्था में भी यह बीमारी हो सकती है। बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण कुछ अलग होते हैं। जैसे कि चिड़चिड़ापन, कहना न मानना, पढ़ाई में ध्यान न देना, स्कूल न जाने के बहाने बनाना इत्यादि। बच्चों में डिप्रेशन को पहचानना इसलिए मुमकिन होता है, क्योंकि इनमें मन की उदासीनता, नाउम्मीदी के ख्याल या अपने आपको खत्म करने के विचार आमतौर पर देखे नहीं जाते।


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डिप्रेशन में लोग अपने अंदर और अपनी निजी परेशानियों से इस कदर अपने आपको घेर लेते हैं कि बाहरी इंसान या बाहरी दुनिया से वे धीरे-धीरे कटते चले जाते हैं। ये कटाव उन्हें जिन्दगी की नीरसता व सूखेपन का अहसास कराने लगताहै। कभी-कभी इस डिप्रेशन नामक बीमारी का असर इतना अधिक हो जाता है कि लोग जिन्दगी से ही भागने लगते हैं और भागते-भागते उनके सामने एक ही विकल्प नजर आता है- मौत। इसलिए खुशी-खुशी लोग मौत को निमंत्रण दे देते हैं।


वैसे डिप्रेशन का इलाज आसान है। इलाज के चार तरीके हैं- 1. दवाएँ, 2. साइकोथैरेपी (मनोरोग विशेषज्ञ द्वारा बातचीत), 3. इलेक्ट्रोकनवल्सिव थैरेपी (बिजली द्वारा इलाज), 4. उन बीमारियों का इलाज जिनके कारण डिप्रेशन हो जाता है। आज भारत में डिप्रेशन दूर करने वाली अधिकतर दवाएँ उपलब्ध हैं।

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मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. गौरव गुप्ता के अनुसार इनके सेवन से कई प्रकार की उदासी दूर की जा सकती है। दवाओं के साथ-साथ बातचीत द्वारा भी इलाज किया जाता है। जिसे साइकोथैरेपी कहा जाता है। यह मनोरोग विशेषज्ञ द्वारा की जाने वाली विशेष बातचीत होती है। इसमें मरीज के मन की दशा को समझकर जिन्दगी में आने वाली मुश्किलों का सामना करने के तरीके सिखाए जाते हैं और प्रोत्साहित किया जाता है।


मनोरोग चिकित्सक डॉ. गौरव गुप्ता का कहना है कि यदि कोई बात, कोई वजह या किसी भी प्रकार की परेशानी को अगर दिल में जगह दे दी जाए तो वह बात लोगों के दिल व दिमाग दोनों पर असर करती है जिससे लोगों को वह परेशानी जिन्दगी से भी बड़ी लगती है। बजाए उस परेशानी का समाधान ढूँढ़ने के, लोग उस जिन्दगी से ही छुटकारा पाने का अवसर ढूँढ़ने लगते हैं।


इसलिए लोगों को कभी भी किसी बात को दिल में दबाकर नहीं रखना चाहिए। हर बात किसी न किसी के साथ बाँट लेनी चाहिए। किसी प्रकार की भावना जैसे गुस्सा, खुशी, दुःख, रोष आदि इन सबको किसी न किसी तरह से व्यक्त कर देना चाहिए, वरना ये भी कभी-कभी घातक सिद्ध हो सकते हैं।


लोग खुदखुशी तभी करते हैं जब वे अकेले हों, अपनी भावनाओं व परेशानियों से घिरे हों और ऐसे में उन्हें कोई सुनने वाला नहीं मिलता, जिनसे वे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें और इसी कारण वे सभी सीमाएँ पार कर जाते हैं। लेकिन अब अकेलेपन को दूर करने के लिए कई संस्थाएँ कार्य कर रही हैं, जिन्होंने हेल्पलाइन नंबर को मार्केट में उतारा है, जिस पर फोन करने से न सिर्फ लोग अपनी परेशानियों को बयाँ कर पाएँगे बल्कि उन्हें वहाँ से सही समाधान भी मिल सकते हैं।


  इसलिए लोगों को कभी भी किसी बात को दिल में दबाकर नहीं रखना चाहिए। हर बात किसी न किसी के साथ बाँट लेनी चाहिए। किसी प्रकार की भावना जैसे गुस्सा, खुशी, दुःख, रोष आदि इन सबको किसी न किसी तरह से व्यक्त कर देना चाहिए      
इसलिए सभी लोग जब भी उदास या किसी कारणवश भयभीत महसूस कर रहे हैं या अकेला महसूस कर रहे हों तो इन हेल्पलाइन नंबरों पर फोन करके बात कर सकते हैं। इन हेल्पलाइनों से लोगों को बहुत फायदा मिल रहा है। लोग इन नंबरों पर फोन करके अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हैं। उन्हें ऐसा लगता है मानो उनकी परेशानियों को बाँटने वाला कोई नया साथी मिल गया है और वे हेल्पलाइन के नए साथी उन लोगों में जीने की नई उमंग, आशा की एक नई किरण का संचार कर देते हैं, जिससे न जाने कितने लोग मौत के मुँह में जाने से बचते हैं।