यहां दशहरे पर नहीं होता रावण दहन, होती है रावण की पूजा, जानिए क्या है इस परंपरा का कारण

WD Feature Desk

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024 (10:27 IST)
Dussehara 2024

Interesting Facts About Dussehara 2024: दशहरा भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख त्यौहार है। इस दिन पूरे देश में रावण का दहन किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के कुछ हिस्सों में रावण का दहन नहीं किया जाता, बल्कि उसकी पूजा होती है? इन स्थानों पर दशहरे के दिन रावण का सम्मान किया जाता है और उसके प्रति शोक व्यक्त किया जाता है। आइए जानें उन जगहों और मान्यताओं के बारे में, जहां रावण को दुष्ट नहीं, बल्कि एक महान राजा और विद्वान माना जाता है।

भारत में कुछ स्थान ऐसे हैं, जहां दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है। खासकर मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक के कुछ क्षेत्रों में रावण को एक योद्धा, विद्वान और भगवान शिव का महान भक्त माना जाता है। यहां लोग दशहरे पर रावण का पुतला जलाने के बजाय उसकी प्रतिमा की पूजा करते हैं और उसे श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। रावण को उनकी विद्वत्ता और शौर्य के कारण सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

क्यों होती है रावण की पूजा
रावण को एक नकारात्मक पात्र के रूप में देखने के बावजूद, कुछ लोग उसे संस्कृत का ज्ञाता, महान राजा और शिव भक्त मानते हैं। रावण के पास न केवल अतुल्य ज्ञान था, बल्कि वह धर्म, नीति और राजनीति का भी कुशल विशेषज्ञ था। यही कारण है कि कुछ समुदायों में उसे एक विद्वान के रूप में आदर दिया जाता है। वे मानते हैं कि उसके चरित्र में जो भी त्रुटियां थीं, वे केवल एक इंसान के रूप में उसकी कमजोरियों को दर्शाती हैं, और उसकी विद्वत्ता को दरकिनार नहीं किया जा सकता।
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कहां नहीं जलता रावण का पुतला :
मंदसौर, मध्य प्रदेश: यहाँ रावण को अपना दामाद माना जाता है, क्योंकि स्थानीय मान्यता के अनुसार, मंदसौर रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका है। यहां दशहरे पर रावण का दहन नहीं होता, बल्कि उसकी पूजा की जाती है।

कांकेर, छत्तीसगढ़: यहां रावण को एक विद्वान के रूप में पूजा जाता है। स्थानीय लोग दशहरे के दिन रावण का पुतला नहीं जलाते, बल्कि उसके गुणों का स्मरण करते हैं।

बैंगलोर, कर्नाटक: यहां भी कुछ समुदाय रावण की पूजा करते हैं और दशहरे पर उसका दहन करने के बजाय उसकी महानता को याद करते हैं।

रावण पूजा के पीछे क्या है कारण
रावण की पूजा के पीछे की सोच यह है कि हर व्यक्ति के भीतर अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं। रावण में जितनी अच्छाइयां थीं, उतनी ही कमजोरियां भी थीं। लेकिन उसकी विद्वत्ता, नीतियां, और भगवान शिव के प्रति उसकी भक्ति को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। इसलिए, जो लोग रावण की पूजा करते हैं, वे उसे एक विद्वान और पराक्रमी राजा के रूप में याद करते हैं।

भारत में दशहरा रावण के अंत का प्रतीक है, लेकिन कुछ स्थानों पर यह एक अलग ही रूप में मनाया जाता है। यहां रावण का दहन करने के बजाय, उसकी पूजा की जाती है और उसे एक महान व्यक्ति के रूप में सम्मानित किया जाता है। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि हर व्यक्ति में अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं, और हमें हर किसी के अच्छे गुणों का सम्मान करना चाहिए।

 
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