अंतर के रावण को जलाएँ

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राम नाम उर मैं गहि औ जाकै सम नहीं कोई।।
जिह सिमरत संकट मिटै दरसु तुहारे होई।

जिनके सुंदर नाम को हृदय में बसा (ग्रहण) लेने मात्र से सारे काम पूर्ण हो जाते हैं, जिनके समान कोई दूजा नाम नहीं है, जिनके स्मरण मात्र से सारे संकट मिट जाते हैं, ऐसे प्रभु श्रीराम को कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ।

देवर्षि, देवता, ब्रह्मा, स्वयं शिव, गिद्ध, नाग, किन्नर प्रभु श्रीराम की भक्ति में चारों पहर लगे रहते हैं, फिर भी पार नहीं पाते हैं। ऐसे प्रभु ने रावण को खत्म करने के लिए मनुष्य का रूप धारण किया। प्रभु की भक्ति को कलियुग में सिर्फ नाम के आधार पर पूर्ण बताया है।

कलियुग जोग न जग्य न ग्याना। एक आधार राम गुन गाना।

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अर्थात कलियुग में न तो योग, न यज्ञ और न ज्ञान का ही महत्व है। एकमात्र राम का गुणगान (नाम की आंतरिक साधना) ही जीवों का उद्धार है। संतों का कहना है प्रभु श्रीराम की सेवा में कपट, दिखावा, छल नहीं है। आंतरिक भक्ति ही आवश्यक है। यही दशहरे का उद्देश्य है कि रावण के पुतले नहीं जलाना है, आंतरिक छल-कपट, द्वेष के रावण को जला दो।

सत्य रूपी राम प्रकट हो जाएँगे क्योंकि वाल्मीकिजी ने राम को ऐसी जगह ही निवास रखने को कहा है, जो सच्चे आंतरिक मन से प्रेम करते हैं। जो प्रभु को भोजन अर्पण करते हैं, जो प्रतिदिन (राम) चरण कमलों की पूजा करते हैं, जिनके हृदय में राम का ही भरोसा रहता है, किसी दूसरे का नहीं और जिनके पैर राम का गुणगान करने वाले स्थान पर चले जाते हैं, प्रभु श्रीराम उनमें निवास करते हैं।

प्रभु प्रसाद सुचि सुभग सुबासा।
सादर जासु लहइ नित नासा।

कर नित करहिं राम पद पूजा। राम भरोसा हृदय नहिं दूजा।।
चरन राम तीरथ चलि जाहीं। राम बसहु तिन्ह के मन माही।।

प्रभु श्रीरामजी से दशहरे पर अपने अंदर के रावण (जैसे धन-संपत्ति का लालच, काम, क्रोध एवं असत्य) को मारकर राम के चरणों में प्रेम माँगो।

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