धर्म एक व्यवस्था है और इस व्यवस्था को सुव्यवस्थित रूप से प्रवाहमान रखने हेतु यह आवश्यक था कि इसके नियमों का पालन किया जाए। किसी भी नियम को समाज केवल दो कारणों से मानता है पहला कारण है- 'लोभ' और दूसरा कारण है- 'भय', इसके अतिरिक्त एक तीसरा व सर्वश्रेष्ठ कारण भी है वह है-'प्रेम' किन्तु उस आधार को महत्व देने वाले विरले ही होते हैं।
यदि आध्यत्मिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो देवशयन कभी होता ही नहीं। जिसे निद्रा छू ना सके और जो व्यक्ति को निद्रा से जगा दे वही तो ईश्वर है। विचार कीजिए परमात्मा यदि सो जाए तो इस सृष्टि का संचालन कैसे होगा! 'ईश्वर' निद्रा में भी जागने वाले तत्व का नाम है और उसके प्राकट्य मात्र से व्यक्ति भी निद्रा में जागने में सक्षम हो जाता है।