(दहकाँ- किसान, ग़ोशा-ए-गंदुम – गेहूँ की बाली)
कपड़ा– तन तो हर कोई ढँक ही लेता है। कोई चीथड़े से कोई लुई फिलिप से। पर हाँ जिसे अच्छे कपड़े पहनने की आस है और वो शो रूम के बाहर टकटकी लगाए खड़ा है तो फिर उसे अच्छे दिनों का इंतज़ार करना पड़ेगा। बात फिर वही है कि भले ही सारा हिंदुस्तान नंगा नहीं घूम रहा पर वो तन ढँकने के लिए जो जतन कर रहा है उसमें तो “चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन”..... और क्या कहिए?