पूरी नहीं होगी रोजे की कमी

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नबी सल्ल ने फरमाया कि 'जो शख्स रमजान का एक रोजा भी बिला उजर शरई के छो़ड़ दे तो फिर जिंदगीभर उसकी कमी पूरी करने के लिए रोजे रखे, तब भी इस एक रजमानी रोजे की कमी पूरी नहीं हो पाएगी।'

इस हदीस से रमजान के रोजों की दीन में अहमियत का अंदाज होता है। अगर आदमी उजर शरई यानी बीमारी या सफर की वजह से रोजे छो़ड़ने की मजबूरी से हटकर रमजान का एक रोजा भी छो़ड़े तो फिर उसके हर्जाने में पूरी जिंदगीभर भी रोजे रखे तो इस एक रोजे की कसर पूरी नहीं होगी।

इसकी वजह यही है कि रमजान के महीने के रोजे अल्लाह ने फर्ज किए हैं। फर्ज कहते ही उस अमल को हैं, जो लाजमी तौर पर करना ही होता है और उससे लापरवाही बरतने वाला दरअसल अल्लाह तआला की रहमत से अपने आप को दूर कर लेता है।

अल्लाह तआला ने रमजानों के रोजों के जरिये मुसलमानों को एक ट्रेनिंग प्रोग्राम दिया है, ताकि उनमें भलाइयों पर चलने और बुराइयों से बचने की सलाहियत पैदा हो।

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