इबादत इमारत की तरह है, ईमान बुनियाद की मानिन्द है। इस्लाम मजहब अल्लाह (ईश्वर) पर ईमान लाना और अल्लाह के पैगंबर के अहकामे शरीअत को दिल से तस्लीम (स्वीकार) करना दरअसल मगफिरत (मोक्ष) का सिलसिला मानता है। रोजा भी इसी की एक कड़ी है। चूंकि रमजानुल-मुबारक के बयान की यह तहरीर सोलहवें रोजे तक अल्लाह की मेहरबानी से पहुंच गई है। लिहाजा रोजे की फजीलत के मद्देनजर यह नुमायां (जाहिर) हो जाता है कि रोजा अल्लाह पर ईमान है और मगफिरत का रोशनदान है।