Putrada Ekadashi : साल 2025 की पहली एकादशी आज, जरूर पढ़ें पुत्र प्राप्ति देने वाली यह व्रत कथा

WD Feature Desk

शुक्रवार, 10 जनवरी 2025 (12:07 IST)
Putrada Ekadashi Katha 2025: वर्ष 2025 में 10 जनवरी, दिन शुक्रवार को पुत्रदा एकादशी मनाई जा रही है। हिन्दू पंचांग कैलेंडर के अनुसार हर साल पौष महीने के शुक्ल पक्ष में यह एकादशी आती है, इसे वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस एकादशी व्रत के प्रभाव से श्री‍हरि के भक्तों को संतान, पुत्रादि होकर अपार धन-ऐश्वर्य तथा सुखी जीवन प्राप्त होता है।ALSO READ: पौष पुत्रदा एकादशी व्रत 2025, जानिए महत्व, पूजा विधि और पारण का समय
 
आइए यहां जानते हैं नव वर्ष के पहले महीने जनवरी में पड़ रही पौष शुक्ल की पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा के बारे में...
 
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा के अनुसार सुकेतुमान नाम का एक राजा भद्रावती नामक नगरी में राज्य करता था और राजा तथा रानी शैव्या निपुती होने के कारण सदैव चिंतित रहते थे, क्योंकि उनके घर कोई पुत्र नहीं था। इस कारण राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा?
 
राजा सुकेतुमान को भी धन, हाथी, घोड़े, राज्य, भाई, बांधव और मंत्री इनमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था। राजा हमेशा यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा? बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा। कहा जाता है कि जिस घर में पुत्र न हो, उस घर में सदैव अंधेरा ही रहता है, इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात् उसके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। 
 
राजा इसी प्रकार दिन-रात चिंता में लगा रहता था। फिर एक समय तो राजा ने शरीर त्याग देने का निश्चय किया, परंतु आत्मघात को महापाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। राजा एक दिन ऐसा ही विचार करते हुए घोड़े पर चढ़कर वन चल दिया तथा वहां पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। राजा ने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है। इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया। इसी प्रकार आधा दिन बीत गया।ALSO READ: Vaikunta Ekadashi 2025 : जनवरी माह में वैकुंठ एकादशी कब है? जानें सही डेट
 
वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त क्यों हुआ? राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर घूमने लगा और देखा तो थोड़ी ही दूरी पर राजा को एक सरोवर दिखाई दिया, जिसमें कमल खिले हुए थे। सारस, हंस तथा मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा का दाहिना अंग फड़कने लगा तो राजा ने शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम किया और वहीं बैठ गया। 
 
तब मुनियों ने राजा को देखकर कहा- हे राजन्! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो। राजा ने पूछा- महाराज आप कौन हैं और किसलिए यहां आए हैं? कृपा करके बताइए। मुनि कहने लगे कि हे राजन्! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।

यह सुनकर राजा ने कहा- महाराज, मेरे घर भी कोई संतान नहीं है। यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। फिर मुनि बोले- हे राजन्! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से आपके घर अवश्य ही पुत्र होगा। 
 
मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत रखा द्वादशी पर पारण किया। तत्पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। फिर कुछ समय व्यतीत होने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके घर एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक बना। अत: भगवान कृष्ण कहते हैं पुत्र प्राप्ति की चाह रखने वाले सभी मनुष्यों को पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस एकादशी के दिन जो मनुष्य इस व्रतका माहात्म्य पढ़ता/ सुनता है, वह सुखमय जीवन बिताकर अंत में स्वर्ग को प्राप्त करता है। ऐसी इस एकादशी व्रत की महिमा है।
 
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