Significance of Rama Ekadashi: रमा एकादशी का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। यह एकादशी दिवाली से ठीक चार दिन पहले आती है और इसे माता लक्ष्मी का ही एक रूप माना जाता है, इसलिए इसे 'रमा' एकादशी कहते हैं। रमा एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करने से धन-धान्य, सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है।ALSO READ: Diwali 2025: दिवाली की रात क्या नहीं करना चाहिए और क्या करें, पढ़ें 18 काम की बातें
महत्व: भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा था कि रमा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे सहस्र अश्वमेध यज्ञों के समान फल प्राप्त होता है। यह व्रत धन, वैभव और समृद्धि प्रदान करता है। रमा एकादशी का व्रत दशमी तिथि की संध्या से ही शुरू हो जाता है और द्वादशी तिथि तक चलता है।
रमा एकादशी व्रत के शुभ मुहूर्त और पारण समय. Rama Ekadashi muhurat and timings
रमा एकादशी शुक्रवार, 17 अक्टूबर, 2025 को
एकादशी तिथि प्रारम्भ- 16 अक्टूबर, 2025 को 10:35 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त- 17 अक्टूबर, 2025 को 11:12 ए एम पर।
रमा एकादशी पारण समय
पारण (व्रत तोड़ने का) समय- 18 अक्टूबर को 06:24 ए एम से 08:41 ए एम पर।
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय- 12:18 पी एम पी।
शुभ समय-
ब्रह्म मुहूर्त- 04:43 ए एम से 05:33 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 05:08 ए एम से 06:23 ए एम
अभिजित मुहूर्त- 11:43 ए एम से 12:29 पी एम
विजय मुहूर्त- 02:01 पी एम से 02:46 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 05:49 पी एम से 06:14 पी एम
सायाह्न सन्ध्या- 05:49 पी एम से 07:05 पी एम
अमृत काल- 11:26 ए एम से 01:07 पी एम
निशिता मुहूर्त- 11:41 पी एम से 12:32 ए एम, 18 अक्टूबर
सूर्यास्त के बाद अन्न-जल त्याग: दशमी की शाम को सूर्यास्त से पहले केवल सात्विक भोजन करें। सूर्यास्त के बाद भोजन (अन्न) ग्रहण न करें।
व्रत का संकल्प: रात को भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए एकादशी का व्रत रखने का संकल्प लें।
2. एकादशी तिथि पर पूजा-
प्रातःकाल स्नान और संकल्प: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। स्वच्छ और पीले या सफेद वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित कर भगवान विष्णु का स्मरण करें और श्रद्धापूर्वक व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थल की स्थापना: पूजा के स्थान को साफ करके एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। इस पर भगवान विष्णु (या उनके वामन रूप) और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
अभिषेक और श्रृंगार: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का गंगाजल से अभिषेक करें। उन्हें चंदन का तिलक लगाएं और पीले फूल या गेंदे की माला अर्पित करें।
पूजन सामग्री: धूप, दीप, नैवेद्य (भोग) अर्पित करें। भोग में तुलसी पत्र अवश्य शामिल करें।
मंत्र जाप और पाठ: घी का दीपक जलाकर भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम और श्रीमद्भगवद्गीता के 11वें या 12वें अध्याय का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
रात्रि जागरण: दिनभर यथाशक्ति निराहार/फलाहार व्रत रखें। रात में भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन और जागरण करें।
कथा श्रवण: पूजा के अंत में रमा एकादशी व्रत कथा का श्रवण या पाठ अवश्य करें।
3. द्वादशी तिथि पर पारण-
पारण का समय: एकादशी के अगले दिन, द्वादशी तिथि के सूर्योदय के बाद शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण (व्रत खोलना) किया जाता है। पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अनिवार्य है।
ब्राह्मण भोजन और दान: पारण से पहले किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं, अन्न, वस्त्र और दक्षिणा दान करें।
व्रत खोलना: दान-दक्षिणा के बाद सात्विक भोजन ग्रहण कर व्रत खोलें।
एकादशी पर चावल, दाल, अनाज, नमक और तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन) का सेवन पूर्णतः वर्जित होता है। आप फल, दूध, शकरकंद, या सिंघाड़े के आटे से बनी सात्विक चीजें चढ़ा सकते हैं।
इस व्रत की कथा राजा मुचुकुंद, उनकी धर्मपरायण पुत्री चंद्रभागा और दामाद शोभन के जीवन से संबंधित है, जो दिखाती है कि कैसे एकादशी व्रत के प्रभाव से शारीरिक दुर्बलता के कारण प्राण त्याग देने के बावजूद, शोभन को स्वर्ग के समान देवपुर नामक नगर मिला, और चंद्रभागा ने अपने अटल विश्वास और पुण्य से उस अस्थिर राज्य को स्थायी बना दिया। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची आस्था और पूर्ण समर्पण से किया गया व्रत मनुष्य के जीवन और मृत्यु, दोनों में ही कल्याणकारी होता है।
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