वरुथिनी एकादशी : घर पर कैसे करें व्रत पूजन, जानिए सरल विधि

वैशाख महीने में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 18 अप्रैल को पड़ रही है। इसलिए वरुथिनी एकादशी व्रत 18 अप्रैल को रखा जाएगा। आओ जानते हैं वरुथिनी एकादशी व्रत करने के नियम और पूजन विधि क्या है।


 
वरुथिनी एकादशी व्रत मुहूर्त : एकादशी तिथि प्रारंभ: 17 अप्रैल को रात्रि 08:07 बजे से एकादशी तिथि समाप्त: 18 अप्रैल को रात 10:19 बजे तक वरुथिनी एकादशी पारणा मुहूर्त: 19 अप्रैल को सुबह 05:51 से 08:26 बजे तक रहेगा। अवधि: 2 घंटे 35 मिनट।
 
 
व्रत और पूजन विधि : दशमी तिथि की रात्रि में सात्विक भोजन करें। एकादशी का व्रत दो प्रकार से किया जाता है। पहला निर्जला रहकर और दूसरा फलाहार करके। एकादशी तिथि को सुबह सूर्योदय से पहले उठकर शौच आदि से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें।
 
 
उसके बाद भगवान विष्णु को अक्षत, दीपक, नैवेद्य, आदि सोलह सामग्री से उनकी विधिवत पूजा करें। फिर यदि घर के पास ही पीपल का पेड़ हो तो उसकी पूजा भी करें और उसकी जड़ में कच्चा दूध चढ़ाकर घी का दीपक जलाएं। घर से दूर है तो तुलसी का पूजन करें। पूजन के दौरान ॐ नमो भगवत वासुदेवाय नम: के मंत्र का जप करते रहें।
 
फिर रात में भी भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा-अर्चना करें। पूरे दिन समय-समय पर भगवान विष्णु का स्मरण करें रात में पूजा स्थल के समीप जागरण करें। एकादशी के अगले दिन द्वादशी को व्रत खोलें। यह व्रत पारण मुहुर्त में खोलें। व्रत खोलने के बाद ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन कराएं।
 
 
व्रत ने नियम : 
कांस्यं मांसं मसूरान्नं चणकं कोद्रवांस्तथा।
शाकं मधु परान्नं च पुनर्भोजनमैथुने।।- भविष्योत्तर पुराण
 
1. इस दिन कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। 
2. मांस और मसूर की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए।
3. चने का और कोदों का शाक नहीं खाना चाहिए। साथ ही शहद का सेवन भी निषेध माना गया है। 
4. एक ही वक्त भोजन कर सकते हैं दो वक्त नहीं। 
5. इस दौरान स्‍त्री संग शयन करना पाप माना गया है।
6. इसके अलावा पान खाना, दातुन करना, नमक, तेल अथवा अन्न वर्जित है।
7. इस दिन जुआ खेलना, क्रोध करना, मिथ्‍या भाषण करना, दूसरे की निंदा करना एवं कुसंगत त्याग देना चाहिए। 
 
व्रत का फल :
1. वरुथिनी एकादशी सौभाग्य देने, सब पापों को नष्ट करने तथा मोक्ष देने वाली है।
2. वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है।
3. कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरुथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है।
4. वरूथिनी‍ एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
5. शास्त्रों में अन्नदान और कन्यादान को सबसे बड़ा दान माना गया है। वरुथिनी एकादशी के व्रत से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है। 
6. इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक है।

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