दुनिया में खाद्य की मांग में साल 2050 तक 60 प्रतिशत का इजाफा हो सकता है
2050 तक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है
ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से 100 साल में 1 डिग्री तापमान में बढ़ोतरी हुई
मौसम की वजह से दुनिया में गहरा सकता है खाद्य संकट, लौटना होगा मोटे अनाज की तरफ
क्लाइमेट चेंज और क्लाइमेट की सायकल गड़बड़ा जाना और इस वजह से दुनियाभर में फसलें बर्बाद होना। यह दुनिया के लिए एक नया खतरा है। फसलें बर्बाद होने का मतलब है कि मानवता पर खतरा। अगर खाने को अन्न ही नहीं होगा तो आखिर ये दुनिया सर्वाइव कैसे करेगी। बेहद चिंता वाली बात तो यह है कि ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज की वजह से भारत की लाखों वर्ग किलोमीटर धान की धरती नष्ट हो सकती है। यह भारत के संदर्भ में बेहद डराने वाली रिपोर्ट है।
हाल ही में आईं कुछ रिपोर्ट्स तो यही कहती हैं कि मौसम और मौसम की बेईमानी की वजह से भारत समेत कई देशों की फसलें और फसलों का उत्पादन खतरे में है। जिस समय बारिश चाहिए तब सूखा है और खडी फसलों के जब धूप चाहिए तो ओलावृष्टि हो रही है।
भयावह है आने वाला समय! मौसम वैज्ञानिक, भोपाल डॉ जीडी मिश्रा ने वेबदुनिया को बताया कि सर्दी, गर्मी और बारिश ने अपना पैटर्न बदल लिया है। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से 100 साल में 1 डिग्री तापमान में बढ़ोतरी हुई है। सीमेंट्र कांक्रिट, इमारतों ने जमीनी रकबा कम कर दिया है। जनसंख्या ज्यादा होने से अनाज की मांग ज्यादा है, इसलिए किसानों ने खेतों में उत्पादन बढा दिया है। कीट नाशक दवाईयों का इस्तेमाल कैंसर जैसी बीमारियां बढा रहा है। आने वाला समय भयावह है। दुनिया को मोटे अनाज (ज्वार-बाजरा) पर जाना होगा और इस वैश्वकि परिवर्तन के खतरे के लिए उपाय भी खोजना होगा।
क्या कहता है ये विश्लेषण : विश्लेषण से पता चलता है कि तीन देशों- भारत, इथियोपिया और मैक्सिको में सभी छोटे किसानों में से लगभग 80 प्रतिशत 2050 तक कम से कम एक जलवायु खतरे से प्रभावित हो सकते हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन फसल उत्पादन के लिए भूमि की पैदावार को प्रभावित करेगा। भारत 2050 तक वर्षा आधारित धान की खेती के लिए उपयुक्त 450,000 वर्ग किलोमीटर भूमि खो सकता है। जलवायु परिवर्तन का खेती किसानी पर खतरे का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके चलते 1961 के बाद से वैश्विक स्तर पर कृषि उत्पादन में पहले ही 21 फीसदी गिरावट आ चुकी है।
Global warming
तापमान कम करेगा पैदावार : दुनिया में खाद्य की मांग में साल 2050 तक 60 प्रतिशत का इजाफा हो सकता है। वहीं, 2050 तक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है। इससे फसल की पैदावार में बड़ी कमी हो सकती है। मसलन, अफ्रीका में मक्का, चावल और गेहूं जैसी मुख्य फसलों के लिए कीट-संचालित नुकसान 50 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है। समय रहते इसे कंट्रोल नहीं किया गया तो दुनिया को भारी नुकसान उठाना होगा।
IMD ने कहा- फसलों की कटाई रोके किसान
साल 2023 की बात करें तो मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल, सिक्किम, असम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में बारिश का दौर जारी है। गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु और ओडिशा में हल्की बारिश हुई। मौसम में इस बदलाव की वजह से किसानों पर आफत सी आई हुई है। आलम यह है कि मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने किसानों को फसल की कटाई रोकने की सलाह दी है। अगर फसलें पहले ही काटी जा चुकी हैं, तो नुकसान से बचने के लिए सुरक्षित स्थानों पर उसका भंडारण करें। मौसम विभाग ने मध्य महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में किसानों को गेहूं और दालों की फसलों की कटाई भी रोकने को कहा है।
न्यूनतम तापमान से खरीफ पर असर : एक अन्य रिसर्च में सामने आया है कि देश के 268 जिलों में खरीफ की फसल (धान उगाने वाले क्षेत्र का 57.2%) न्यूनतम तापमान में इजाफे से असर बुरी तरह से प्रभावित हुआ। न्यूनतम तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी की वजह से धान की उपज में 411- 859 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक की गिरावट दर्ज की गई। यानी अगर भविष्य में तापमान का यही हाल रहा तो यह फसलों को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है।
50 सालों में बदला मौसम का ट्रेंड : तमाम रिचर्स में सामने आया कि पिछले भूगर्भीय रिकॉर्ड की तुलना में अब मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा है। इसके पीछे क्लाइमेट चेंज है। आसान भाषा में समझे तो जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग और मानसून में अस्थिरता को बढ़ा रही है, जिसके चलते गर्मी के मौसम की अवधि बढ़ रही है और बारिश की अवधि कम हो रही है। साल 2022 में साल 1902 के बाद से दूसरी सबसे बड़ी घटनाएं देखी गई। जिनमें बाढ़ और सूखे जैसी खतरनाक घटनाएं बढ़ गई हैं। 19वीं सदी की तुलना में 20वीं सदी में धरती का तापमान लगभग 1.2 सेल्सियस अधिक बढ़ चुका है और वातावरण में CO2 की मात्रा में भी 50 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।
खतरे का इशारा करती ये रिपोर्ट्स
सीएसई की अर्बन लैब के मुताबिक 2022 के लिए औसत हवा का तापमान प्री-मॉनसून या गर्मी (आईएमडी वर्गीकरण के अनुसार मार्च, अप्रैल और मई) 1971-2000 क्लाईमेटॉलॉजी पर आधारित बेसलाइन ट्रेंड्स की तुलना में 1.24 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की 'स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट इन 2021' रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 7 सालों की तुलना में 2021 ने सबसे गर्म साल होने का रिकॉर्ड बनाया।
उत्तर भारत में साल 2021-22 की ठंड सामान्य से ज्यादा लंबे समय तक रही। जिसके कारण ठंडे दिन या कोल्ड डे की स्थिति बन गई।
पिछले 1,25,000 सालों में पिछला दशक सबसे ज्यादा गर्म रहा। वैश्विक सतह का तापमान 2011-2020 के दशक में 1850-1900 की तुलना में 1.09 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था।
अनाज, दाल, सब्जियों की बढ़रही वार्षिक मांग
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक अनाज दाल, खाद्य तेल, सब्जियों और फलों की वार्षिक मांग में 1.3 प्रतिशत, 3 प्रतिशत, 3.5 प्रतिशत, 3.3 प्रतिशत और 5 प्रतिशत का इजाफा हो रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक पहले से ही 43 प्रतिशत देश सूखे का सामना कर रहा है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक बारिश की अनियमितता और नहरों की सिंचाई पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। अगर ये आंकड़े बढ़ते हैं और वैश्विक जलवायु और क्लाइमेट चेंज को लेकर विमर्श चिंता व्यक्त नहीं की गई तो दुनिया पर मौसम की मार की वजह से अन्न का संकट साफतौर से मंडराता दिख रहा है।