उल्लेखनीय है कि सरकार और तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के एक समूह के साथ आठ दौर की वार्ता संकट का समाधान कर पाने में अब तक नाकाम रही है। वहीं उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी और गतिरोध खत्म करने के लिए चार सदस्यों की एक समिति गठित की।
हालांकि प्रदर्शनकारी किसान संगठनों ने कहा है कि वे समिति के समक्ष उपस्थित नहीं होंगे क्योंकि उनका मानना है कि यह (समिति) सरकार समर्थक है। हालांकि उन्होंने (किसान संगठनों ने) 15 जनवरी को होने वाली नौवें दौर की बैठक में शामिल होने की इच्छा प्रदर्शित की है, लेकिन उन्होंने जोर देते हुए कहा कि वे इन कानूनों को पूरी तरह से रद्द किए जाने से कुछ भी कम स्वीकार नहीं करेंगे।
रूपाला ने कहा, वार्ता अवश्य जारी रहनी चाहिए। केवल वार्ता के जरिए ही आगे का कोई रास्ता तलाशा जा सकता है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में यह कहा। दरअसल, उनसे पूछा गया था कि संकट दूर करने के लिए शीर्ष न्यायालय द्वारा एक समिति गठित किए जाने के मद्देनजर क्या 15 जनवरी को सरकार और प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के नेताओं की निर्धारित बैठक होगी।
मंगलवार को, कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने कहा था कि सरकार बैठक में शामिल होने को इच्छुक है और यह फैसला करना किसान संगठनों पर निर्भर करता है कि वे क्या चाहते हैं। नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर पिछले साल 28 नवंबर से प्रदर्शन कर रहे हैं।(भाषा)