नए कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का दिल्ली विरोध आंदोलन अब एक महीने का समय पूरा कर लिया है। अब तक सरकार और किसानों की बीच छह दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन कोई भी सार्थक हल नहीं निकला है। सरकार और किसानों के बीच अब पत्र पॉलिटिक्स चल रही है और सरकार के नए पत्र के बाद अब किसान संगठनों की एक महत्वपूर्ण बैठक आज भी चल रही है।
संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हो रहे है। किसान मोर्चा की बैठक को लेकर किसान मोर्चा से जुड़े आशुतोष मिश्रा कहते हैं कि सरकार मुद्दे को हल निकालने की बजाए पत्र-पत्र लिखने का खेल रही है और आज की बैठक में यह तय होगा कि सरकार के पत्र का क्या जवाब दिया जाए।
दिल्ली को लॉक करने की रणनीति !- जैसे-जैसे सरकार और किसानों के बीच पूरा विवाद आगे बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे अब दिल्ली बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन बढ़ता जा रहा है और अब किसानों के सब्र का बांध टूटता भी दिख रहा है। कड़ाके की ठंड में देश भर से किसानों का दिल्ली कूच जारी है और किसान अब दिल्ली को लॉक करने की रणनीति पर आगे बढ़ते दिखाई दे रहे है।
शुक्रवार शाम से ही किसानों ने दिल्ली-जयपुर हाईवे को जाम कर दिया है। संयुक्त किसान मोर्चा से जड़े आशुतोष कहते हैं कि किसान दिल्ली आना चाहते थे लेकिन जब पुलिस ने उनको रोक दिया तो उन्होंने वहीं पर धरना देना शुरु कर दिया है। शाहजहांपुर बॉर्डर पर महाराष्ट्र से करीब एक हजार किसानों के आने से जब पुलिस ने रोका तो किसान वहीं बैठ गए और उससे दोनों तरफ का ट्रैफिक रूक गया।
वहीं दूसरी ओर गाजीपुर बॉर्डर पर भी भी अचानक से करीब 5 हजार किसानों के आ जाने से यहां पर विरोध कर रहे किसानों की संख्या मे वृद्धि हो गई है। अब इनकी संख्या कुल 12000 से ज्यादा हो गई है। इन सभी किसानों को उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की सरकारों ने कुछ दिनों से आने से रोका हुआ था।
आंदोलन के एक महीने पर धिक्कार दिवस- वहीं आज किसान आंदोलन के दिल्ली विरोध का एक महीना पूरा होने पर किसान संगठन धिक्कार दिवस मना रहे है। किसान संगठन सरकार का धिक्कार उसकी संवेदनहीनता और किसानों की पिछले 7 माह के विरोध और ठंड में एक माह के दिल्ली धरने के बावजूद मांगें न मानने के लिए किया जा रहा है। किसानों ने एलान किया है कि रविवार को प्रधानमंत्री के मन की बात प्रसारण के समय गांव-गांव में किसान सामूहिक रूप् से थाली पीटेंगे।
किसान नेता शिवकुमार शर्मा कहते हैं कि सरकार का दावा कि वह खुले मन से सहानुभूतिपूर्वक वार्ता कर रही है लेकिन यह एक छलावा मात्र है। उसका दिमाग पूरी तरह से बंद है और कानूनों में कुछ सुधारों पर अड़ा हुआ है। वह देश के लोगों को धोखा और किसान आन्दोलन को बदनाम करना चाहती है। सरकार यह दिखाना चाह रही है कि वह बातचीत के लिए तैयार है लेकिन किसान वार्ता के लिए नहीं आ रहे। किसान नेताओं ने कभी भी वार्ता के लिए मना नहीं किया। वे किसी भी तरह की जल्दी में नहीं हैं और कानून वापस कराकर ही घर जाएंगे।
वहीं नए कृषि कानून के विरोध में हरियाणा में किसानों के टोल फ्री करने का आंदोलन लगातार जारी है जिससे नेशनल हाईवे पर स्थित सभी टोल पूरी तरह फ्री है जिससे सरकार को बड़े पैमाने पर राजस्व का नुकसान भी उठाना पड़ रहा है।