how to calculate retirement corpus in india: भारत में रिटायरमेंट के लिए एक सुरक्षित फंड बनाना, हर मध्यमवर्गीय परिवार के लिए एक सुरक्षा माना जाता है। ₹1 करोड़ का रिटायरमेंट फंड अक्सर एक सुरक्षित भविष्य की गारंटी माना जाता रहा है। लेकिन, चेन्नई के ऑडिट एक्सपर्ट बी. गोविंद राजू ने लिंक्डइन पर एक ऐसी चेतावनी दी है, जो एक वेक-अप कॉल की तरह है। उनका कहना है कि ₹1 करोड़ अब रिटायरमेंट का सेफ्टी नेट नहीं, बल्कि एक जाल बनता जा रहा है, अगर आपने उससे आगे की प्लानिंग नहीं की है तो। यह चेतावनी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर क्यों भारत में साल 2045 तक रिटायर होने वाले लोगों को क्या समझने की जरूरत है।
कैसे 2045 तक घट जाएगा 1 करोड़ का मूल्य
बी. गोविंद राजू के विश्लेषण के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति 60 साल की उम्र में ₹1 करोड़ के फंड के साथ रिटायर होता है और 85 साल तक जीता है, तो उसके पास हर महीने लगभग ₹33,000 होंगे। यह राशि आज के हिसाब से ठीक लग सकती है, लेकिन महंगाई की मार इसे तेजी से कम कर देगी। उनका कहना है कि महज 10 साल में वही ₹33,000 महंगाई के चलते ₹17,500 जैसे महसूस होंगे। और 85 साल की उम्र तक यह गिरकर ₹16,000 से भी कम रह जाएगा – जो आज के हिसाब से सिर्फ किराना और मेंटेनेंस में ही खत्म हो सकता है।
इस गणित में अभी मेडिकल खर्च, परिवार की आकस्मिक जरूरतें, किराया (यदि घर अपना न हो) और जीवन के अन्य जरूरी खर्च शामिल नहीं हैं। ऐसे में, यह साफ है कि ₹1 करोड़ का फंड एक मजबूत रिटायरमेंट के लिए पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह एक 'सेफ्टी नेट' से ज्यादा 'जाल' बन सकता है। बी. गोविंद राजू की यह चेतावनी एक वेक-अप कॉल है।
महंगाई, स्वास्थ्य और वित्तीय साक्षरता
भारतीय मध्यम वर्ग रिटायरमेंट के लिए पर्याप्त बचत करने में क्यों चूक रहा है: 1. महंगाई का गलत अनुमान: हम अक्सर भविष्य की महंगाई का सही अनुमान नहीं लगाते। वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें, खासकर स्वास्थ्य सेवाओं की, तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे बचत का वास्तविक मूल्य कम हो जाता है। 2. स्वास्थ्य खर्च की अनदेखी: रिटायरमेंट के बाद स्वास्थ्य संबंधी खर्चों में भारी वृद्धि होती है। लोग अक्सर अपनी प्लानिंग में इसे पर्याप्त रूप से शामिल नहीं करते, जिससे रिटायरमेंट फंड पर अनावश्यक बोझ पड़ता है। 3. कम वित्तीय साक्षरता: भारत में वित्तीय साक्षरता का स्तर अभी भी अपेक्षाकृत कम है। लोग निवेश के विभिन्न विकल्पों, महंगाई के प्रभाव और लंबी अवधि की योजना के महत्व को पूरी तरह से नहीं समझते। 4. गैर-तरल संपत्तियों पर निर्भरता: कई भारतीय परिवार अपनी बचत का एक बड़ा हिस्सा प्रॉपर्टी जैसी गैर-तरल (illiquid) संपत्तियों में निवेश करते हैं। ये संपत्तियां आपातकाल में आसानी से नकदी में नहीं बदल पातीं और अक्सर रखरखाव का खर्च भी बढ़ाती हैं। प्रॉपर्टी की कीमतें भी तेजी से बढ़ी हैं, जिससे आम आदमी के लिए घर खरीदना और भी मुश्किल हो गया है। 5. आय में मामूली इजाफा: प्रॉपर्टी की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, जबकि औसत आय में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हुई है, जिससे घर खरीदने की क्षमता कम हुई है।
समाधान के लिए मध्यम वर्ग को इन बातों पर अमल करना चाहिए
यह चेतावनी निराशाजनक लग सकती है, लेकिन यह हमें एक मौका भी देती है कि हम अपनी वित्तीय योजनाओं पर फिर से विचार करें और उन्हें मजबूत करें: • रिटायरमेंट लक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन: अपने रिटायरमेंट के लिए आवश्यक राशि का अधिक यथार्थवादी अनुमान लगाएं, जिसमें महंगाई और स्वास्थ्य खर्चों को शामिल किया जाए। • जल्दी निवेश शुरू करें: कंपाउंडिंग की शक्ति का लाभ उठाने के लिए जितनी जल्दी हो सके निवेश शुरू करें। • निवेश में विविधता: केवल प्रॉपर्टी पर निर्भर रहने के बजाय, इक्विटी, डेट फंड, म्यूचुअल फंड और अन्य वित्तीय साधनों में विविधता लाएं। • स्वास्थ्य बीमा और इमरजेंसी फंड: एक मजबूत स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लें और अप्रत्याशित खर्चों के लिए एक अलग इमरजेंसी फंड बनाएं। • वित्तीय साक्षरता बढ़ाएं: व्यक्तिगत वित्त, निवेश और रिटायरमेंट प्लानिंग के बारे में अधिक जानें।
• आय के अतिरिक्त स्रोत: रिटायरमेंट के बाद भी आय के कुछ पैसिव स्रोत बनाने पर विचार करें।