'दोस्त, दोस्त ना रहा/ प्यार प्यार ना रहा/ जिंदगी हमें तेरा एतबार ना रहा।' राजेन्द्रकुमार, राजकपूर, वैजयंतीमाला अभिनीत फिल्म संगम का यह गीत दर्शाता है कि दोस्त की बेवफाई जिंदगी से एतबार उठने की तरह निराशा की चरम सीमा होती है। जाहिर तौर पर दोस्ती के मायने जिंदगी के गंभीरतम अहसास की तरह ही महत्वपूर्ण हैं।
फिल्म जगत ने इस तथ्य की अहमियत समझी और अपने कथानकों में मित्रता के फलसफे को मजबूती से शुमार किया। प्रकाश मेहरा की फिल्म जंजीर के पठान पात्र (प्राण) पर फिल्माया गीत 'यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी' पूरे कथानक पर हावी था। इसके साथ ही अमिताभ की फिल्मों में दोस्ती के महात्म्य वर्णन की परंपरा शुरू हुई।
रमेश सिप्पी की शोले ने वीरू और जय की दोस्ती के किस्से इस कदर चमकाए कि तमाम नौजवान एक-दूसरे के कंधों में गलबँहिया डाले घूमते नजर आने लगे थे। धर्मेन्द्र और अमिताभ बच्चन ने इस जोड़ी को रुपहले परदे पर अमर कर दिया। कुछ इसी तर्ज पर राम बलराम, गौतम-गोविंदा, खुदगर्ज जैसी फिल्मों का निर्माण हुआ।
हम पाँच और लश्कर उन फिल्मों में शुमार हुई जिनमें दोस्ती का दायरा दो यारों से बढ़कर चार-पाँच युवाओं के समूह तक जा पहुँचा। एन. चंद्रा की फिल्म अंकुश के मुख्य पात्र चार-पाँच नौजवान हैं जो अपनी प्रगाढ़ मैत्री केबल पर विकृत शासन-तंत्र की विद्रूपता का मुकाबला करते हैं।
साठ के दशक में ताराचंद बड़जात्या की फिल्म 'दोस्ती' ने धूम मचाई थी। पुरस्कारों की बारिश तले इसे लाद दिया गया। फिल्म के नायक दो युवा कलाकार थे। इनके मैत्री-भाव को रजतपट पर सौम्य भंगिमाओं के साथ प्रस्तुत किया गया। इसी सिलसिले की अगली कड़ी थी सत्तर के दशक की वे फिल्में, जिनमें शत्रुघ्न सिन्हा, धर्मेन्द्र, विनोद खन्ना, अमिताभ जैसे सितारों ने परवरिश, मुकद्दर का सिकंदर, काली घटा, कभी-कभी की भूमिकाओं में गाहे-बगाहे दोस्ती के पैमाने पर कथानक को नए रंग दिए।
यश चोपड़ा की बहुचर्चित फिल्म सिलसिला के नायक अमिताभ और शशि कपूर अनन्य मित्र हैं। दोनों की दोस्ती दो भाइयों की तरह आत्मीयता से परिपूर्ण नजर आती है। वायु सैनिक शशि कपूर की मौत हवाई दुर्घटना में हो जाती है और दोस्त (अमिताभ) अपने प्यार (रेखा) की कुर्बानी देकर मित्र की मंगेतर (जया) के सूने जीवन में बहार लाने की कोशिश करता है।
मित्रता के धरातल पर समर्पण और त्याग की अमर दास्तानें इतिहास में रची गई थीं, जिन्हें फिल्मी परदे पर भी रूपायित करने की चेष्टा की गई। दूसरी ओर इंडस्ट्री में दो यारों ने मिलकर व्यवसाय की चुनौतियों को मिलकर पूरा करने का बीड़ा उठाया। नदीम-श्रवण जैसी संगीत निर्देशक जोड़ियाँ अस्तित्व में आईं, तो कुछ सितारों ने मिलकर फिल्म निर्माण कंपनियाँ खोलीं।
लगान के युवा निर्देशक आशुतोष गोवारीकर और अभिनेता आमिर खान फिल्म होली (निर्देशक केतन मेहता) के जमाने से एक-दूसरे को जानते थे। नौजवान कलाकारों वाली यह फिल्म भी कॉलेज छात्रों के खट्टे-मीठे याराना अनुभवों पर केंद्रित थी। अमिताभ की फिल्मों याराना और दोस्ताना की तर्ज पर कई ऐसी फिल्में बनीं, जिनका दारोमदार मित्रता के दर्शन पर आधारित रहा। ऐसी ज्यादातर फिल्मों में एक मित्र दूसरे मित्र के लिए त्याग और बलिदान की मिसाल बनकर दर्शकों की सहानुभूति अर्जित करता है।
नई फिल्मों में पिछले दिनों प्रदर्शित लव के लिए कुछ भी करेगा में निर्देशक ने तीन सितारों सैफ, आफताब, फरदीन को साथ खड़ा किया था। युवा फिल्मकार फरहान ने भी यारों की तिकड़ी बदले चेहरों आमिर, अक्षय, सैफ के रूप में अपनी पहली फिल्म दिल चाहता है के लिए पेश करने की कोशिश की। हिन्दुस्तानी समाज में मैत्री भाव की परंपरा श्रीकृष्ण-सुदामा के समय से चली आ रही है। फिल्मी परदा भी इसे सामाजिक रचनाशास्त्र की अहम कड़ी के बतौर शिद्दत के साथ दर्शकों के समक्ष महिमामंडित करने में जुटा हुआ है।