दीपा क्लास के दरवाजे पर इस तरह खड़ी हो गई कि अवनि क्लास के अंदर नहीं आ पाए, जानबूझकर दीपा ऐसे काम करती जिससे अवनि को हैरान होना पड़े। अवनि जानती थी कि दीपा से कुछ भी कहना बेकार है, इसलिए वो वापस पलट गई। पीछे जोरदार ठहाका लगा। अवनि की आंखों मे नमी उतर आई।
एक समय था जब ये दोनों पक्की सहेलियां थी। हर बात का साथ था दोनों का। पर आज केवल प्रतिद्वंद्वी।
उनका दोस्ताना देख कितनी कोशिश चलती थी कि इस दोस्ती मे दरार पड़ जाए। मालुम तो सबको ही था कि दीपा कान की कितनी कच्ची है, अवनि ही उसे संभाल रखती।
"पहले कही बात को परखो फिर विश्वास करो" कितनी बार तो अवनी ये बात दीपा के कानों मे डाल चुकी थी, उसे कहां पता था कि उसकी सीख ऐसे हवा मे उड़ जाएगी।
दोनों पढ़ाई के साथ टेबल टेनिस मे भी माहिर थीं। इस बार खिलाड़ियों का चयन होना था स्टेट लेवल पर। शुरुआती प्रतियोगिता में ही दोनों आमने-सामने थीं। ये केवल इत्तेफाक था कि अवनि का लगाया जोरदार शॉट, दीपा की उगलियों को चोटिल कर गया। इसी आधार पर उसे प्रतियोगिता से बाहर होना पड़ा। अवनि का चयन हो गया।
वे लड़कियां, जो जाने कबसे इसी मौके की तलाश में थी, उनकी दोस्ती तोड़ने का सुनहरा मौका हाथ लगा। फिर जाने कितने अफसाने बने और अवनि के प्रति दीपा का मन खट्टा कर गए। अवनि की कोई सफाई काम न आई। दीपा की ये बेरूखी अवनि को तोड़ गई।
फिर वक्त ने कुछ ऐसी करवट ली कि वार्षिक परीक्षा के लगभग दो महीने पहले दीपा बेतरह बीमार पड़ी। उसे मियादी बुखार ने आ घेरा। उसकी पढ़ाई ठप्प हो गई। वे चापलूस लड़कियां हवा के झोंके की मानिंद गायब होने लगी।
अवनि ही रोज के नोट्स बना दीपा की मम्मी को दे आती। दीपा उसका लिखा पहचान न ले इसके लिए उसे अपने लिखे का तरीका बदलना पड़ा।
आंटी परख रही थीं अवनि की दोस्ती। एक दिन आंटी ने ही बताया कि नोट्स मिलने के बाद भी दीपा उदास एवं हताश है। तब अवनि ने दीपा से बात करने की सोची। पहल उसी को करनी पड़गी, वो नादान केवल मुंह फुलाना जानती है।
अवनि के सामने आते ही मानो दीपा का इतने दिनों का बांधा गुस्सा निकल पड़ा। दीपा और खरी सुनाती अवनि को कि मां आ गई।
"बस कर अवनि!! अपनी दोस्ती साबित करने के लिए और कितने इम्तिहान दोगी? ये नादान नहीं समझ पाएगी तुम्हारी दोस्ती को।"फिर मां ने दीपा के बीमार होने से लेकर अब तक का सारा किस्सा बयान किया।
दीपा हैरान थी, शर्मिंदा भी। उसकी आंखों में आंसू तिर आए। अवनि ने उसे गले लगा लिया। इतने दिनों का बिछोह दोनों की आंखों से आंसू बन बह निकले। आंटी की आंखे भी नम थी। एक महीने के बाद दोनों एक साथ स्कूल पहुंची। वे चापलूस लड़कियां आंख चुराते इधर-उधर हो गईं। उनकी दोस्ती अग्नि परीक्षा से गुजर और खरी हो गई थी।