हास्य कविता : किष्किंधा-कांड

शशांक तिवारी
इसी बीच सुग्रीव से, हुई एक मुलाकात
दोनों के दुख एक से, हो गए दोनों साथ
 
बाली का स्टिंग किया,किया पुलिस के हाथ
दूर किया सुग्रीव का, बरसों का संताप 
 
हनुमान को देख कर, प्रभु ने किया प्रनाम 
आंख में आंसू पाय के, पवनसुत परेशा
 

 
गले लगाकर राम को, बोले श्री हनुमान
मां लाऊंगा जल्द ही, रक्खो अपना ध्यान 
               
लंका में नेटवर्क का, नही हुआ विकास
बंद है प्रिय का फोन, कैसे होवे बात
 
परेशान प्रभु हो नही, मरेगा वो रावन 
खत्म होगा ये युद्ध जब, लगेंगें वहां टावर
 
डरे समंदर लांघने, जामवंत समझाए
रिवाइटल को खाय लो, दूजा नही उपाय

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