आम आदमी और सेल्समैन की फनी कविता...

- आशुतोष झा


 
एक दिन (इतवार को) मैं देख रहा था टीवी।
सभी थे व्यस्त अपने कार्यों में ही।।
 
तभी एक सज्जन ने गेट खटखटाया।
मैं बाहर आया तो उसने हाथ मिलाया।।
 
पता चला जनाब हैं सेल्समैन।
करने आए हैं जेब का सीटी स्कैन।।
 
मैंने पूछा और यार बताओ।
उसने कहा यह क्रीम तुम अपनाओ।।
 
अरे! यह ऐसी है क्रीम।
कि सुंदर हो जाओगे तुम भी, बहुत अच्छी है स्कीम।।
 
इसे अपनाएं केवल चार हफ्ते।
दे रहा हूं मैं बहुत ही सस्ते।।
 
मैंने पूछा कितने की है?
उसने कहा साठ रुपए मात्र और फ्री चायपत्ती है।।
 
मैंने कहा भाई, हमीं से करोगे सब कमाई।
उसने कहा डिस्काउंट देकर आपको कीमत है बताई।।
 
बाजार से लाओगे।
तो दुगनी कीमत की पाओगे।।
 
हम घर-घर जाकर सप्लाई कर रहे हैं।
इसीलिए तो इतनी छूट एप्लाई कर रहे हैं।।
 
मैं करने लगा विचार।
तभी उसने कहा इस बार।।
 
अरे! क्या सोच रहे हो।
इससे भी ज्यादा छूट खोज रहे हो।।
 
ले लो न तो पछताओगे।
कब तक दुनिया को अपनी रोनी सूरत दिखलाओगे।।
 
हमारी क्रीम ने बनाया सबको सुंदर गोरा।
चाहे भाभी, भैया, चाची हों या हो कोई लल्लन टॉप छोरा।।
 
मैंने कहा रखो अपनी क्रीम मेरे पास नहीं हैं पैसे।
अभी खर्चा चला रहा हूं जैसे-तैसे।।
 
उसने कहा किसी से उधार लेकर लो खरीद।
यह सुनहरा मौका बार-बार नहीं होता है नसीब।।
 
एक बार गया अवसर बार-बार नहीं है आता।
गर आ गया फिर तो बार-बार नहीं खटखटाता।।
 
लो खरीद चायपत्ती के लिए ही सही।
कहा मैंने बनाओ मत मेरे दिमाग का दही।।
 
मैंने जोड़े हाथ।
भैया करो मुझे माफ।।
 
उसने कहा इतना समझाया।
फिर भी तू समझ न पाया।।
 
अरे इतना भीड़ को समझाता।
तो पीएम बन जाता।।
 
नहीं तो कम से कम एमपी ही कहलाता।
 
सच ही कहा किसी ने कि कवियों को न समझाओ।
खुद पर तरस खाओ और अपनी जान बचाओ।।
 
कहीं दिख जाए कोई कवि।
तो हुई शनि की वक्री दृष्टि।।
 
सारी कविताएं सुनाकर ही मानेंगे।
सारा खून चूसने की ठानेंगे।।
 
बच गया आज मुझे नहीं था पता।
कि पड़ गया पाला आज कवि से भला।।
 
चलो जान बची तो लाखों पाए।
चलें अपनी क्रीम किसी और को लगाएं।।
 
इस तरह हुआ वह विदा।
मैंने कहा धन्यवाद मेरे खुदा।।
 
मुझे बचा लिया ठगने से।
क्या कभी होता है ऊंचा कोई अपना चेहरा रंगने से।।
 

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