गाँधीजी का जीवन-दर्शन

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गाँधीजी का देशभक्तों की पंक्ति में सबसे ऊँचा स्थान है। गाँधी की देशभक्ति मंजिल नहीं, अनन्त शान्ति तथा जीव मात्र के प्रति प्रेमभाव की मंजिल तक पहुँचने के लिए यात्रा का एक पड़ाव मात्र है। गाँधीजी ने कहा- 'जिस सत्य की सर्वव्यापक विश्व भावना को अपनी आँख से प्रत्यक्ष देखना हो उसे निम्नतम प्राणी से आत्मावत प्रेम करना चाहिए।' जीव मात्र के प्रति समदृष्टि से सत्य, अहिंसा एवं प्रेम की त्रिवेणी प्रवाहित होती है।

'वैष्णव जण तो ते णे कहिए, जे पीर पराई जाणे रे'

दक्षिण अफ्रीका और भारत में उन्होंने सार्वजनिक आन्दोलन चलाए। इन जनआन्दोलनों से उन्होंने सम्पूर्ण समाज में नई जागृति, नई चेतना तथा नया संकल्प भर दिया। उनके इस योगदान को तभी ठीक ढंग से समझा जा सकता है जब हम उनके मानव प्रेम को जान लें, उनके सत्य को पहचान लें, उनकी अहिंसा भावना से आत्मसाक्षात्कार कर लें।

गाँधीजी के शब्द थें : 'लाखों-करोड़ों गूँगों के हृदयों में जो ईश्वर विराजमान है, मैं उसके सिवा अन्य किसी ईश्वर को नहीं मानता। वे उसकी सत्ता को नहीं जानते, मैं जानता हूँ। मैं इन लाखों-करोड़ों की सेवा द्वारा उस ईश्वर की पूजा करता हूँ जो सत्य है अथवा उस सत्य की जो ईश्वर है।'

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