श्री गणेश जी ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह से संबद्ध किया जाता है। इनकी उपासना नवग्रहों की शांतिकारक व व्यक्ति के सांसारिक, आध्यात्मिक दोनों तरह के लाभ की प्रदायक है। अथर्वशीर्ष में इन्हें सूर्य व चंद्रमा के रूप में संबोधित किया है।
पृथ्वी पुत्र मंगल में उत्साह का सृजन एकदंत द्वारा ही आया है। बुद्धि, विवेक के देवता होने के कारण बुध ग्रह के अधिपति तो ये हैं ही, जगत का मंगल करने, साधक को निर्विघ्नता पूर्ण कार्य स्थिति प्रदान करने, विघ्नराज होने से बृहस्पति भी इनसे तुष्ट होते हैं।
धन, पुत्र, ऐश्वर्य के स्वामी गणेश जी हैं, जबकि इन क्षेत्रों के ग्रह शुक्र हैं। इस तथ्य से आप भी यह जान सकते हैं कि शुक्र में शक्ति के संचालक आदिदेव हैं। धातुओं व न्याय के देव हमेशा कष्ट व विघ्न से साधक की रक्षा करते हैं, इसलिए शनि ग्रह से इनका सीधा रिश्ता है।
विघ्न, आलस्य, रोग निवृत्ति एवं संतान, अर्थ, विद्या, बुद्धि, विवेक, यश, प्रसिद्धि, सिद्धि की उपलब्धि के लिए चाहे वह आपके भाग्य में ग्रहों की स्थिति से नहीं भी लिखी हो तो भी श्री गणेश जी की अर्चना से सहज ही प्राप्त हो जाती है।
गणेश जी की स्तुति, पूजा, जप, पाठ से ग्रहों की शांति स्वमेव हो जाती है। किसी भी ग्रह की पीड़ा में यदि कोई उपाय नहीं सूझे अथवा कोई भी उपाय बेअसर हो तो आप गणेशजी की शरण में जाकर समस्या का हल पा सकते हैं।