गणेश पुराण महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसके पठन-पाठन से सब कार्य सफल हो जाते हैं। गणेश पुराण में पांच खंड पाए जाते हैं। संक्षेप में जानते हैं गणेश पुराण के पांचों खंडों के बारे में......
पहला खंड-
आरंभ खंड -
इस खंड में ऐसी कथाएं बताई गई है जिससे हमेशा सब जगह मंगल ही होगा। इसमें सबसे पहली कथा के माध्यम से बताया है कि किस प्रकार प्रजा की सृष्टि हुई और सर्वश्रेष्ठ देव भगवान् गणेश का आविर्भाव किस प्रकार हुआ। आगे इसमें शिव के अनेक रूपों का वर्णन किया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि कैसे शिव सृष्टि की उत्पत्ति,संहार और पालन करते हैं।
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दूसरा खंड-
परिचय खंड -
दूसरा खंड परिचय खंड है जिसमें गणेश जी के जन्म के कथाओं का परिचय दिया गया है। इसमें अलग-अलग पुराणों के अनुसार कथा कही गई है। जैसे पद्म व लिंग पुराण के अनुसार। और अंत में गणेश की उत्पत्ति की कथा विस्तार बताई गई है।
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तीसरा खंड-
माता पार्वती खंड -
तीसरा खंड माता पार्वती खंड है। इसमें पार्वती के पर्वतराज हिमालय के घर जन्म की कथा है और शिव से विवाह की कथा। फिर तारकासुर के अत्याचार से लेकर कार्तिकेय के जन्म की कथा भी इसमें वर्णन है। इस खंड में वशिष्ठ जी द्वारा सुनाई अरण्यराज की कथा भी है।
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चौथा खंड-
युद्ध खंड -
यह युद्ध खंड नामक खंड है। इसके आरंभ में मत्सर नामक असुर के जन्म की कथा है जिसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य से शिव पंचाक्षरी मंत्र की दीक्षा ली। आगे तारकासुर की कथा है। उसने ब्रह्मा की आराधना कर त्रैलोक्य का स्वामित्व प्राप्त किया। साथ ही इसमें महोदर व महासुर के आपसी युद्ध की कथा है। इसमें लोभासुर व गजानन की कथा भी है जिसमें लोभासुर ने गजानन के मूल महत्त्व को समझा और उनके चरणों की वंदना करने लगा।
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पांचवां खंड-
महादेव पुण्य कथा खंड -
पांचवा खंड महादेव पुण्य कथा खंड है। इसमें सूत जी ने ऋषियों को कहा,आप कृपा करके गणेश,पार्वती के युगों का परिचय दीजिए। आगे इस खंड में सत्तयुग,त्रेतायुग व द्वापर युग के बारे में बताया गया है। जन्मासुर,तारकासुर की कथा के साथ इसका अंत हुआ है।
इस तरह गणेश पुराण के पांच खंडों में मंगलकारी श्री गणेश के जन्म से लेकर उनकी लीलाओं और उनकी पूजा से मिलने वाले यश के बारे का संपूर्ण वर्णन किया गया है। इसके अलावा उनसे जुड़ी बहुत सी अन्य बातों को भी इसमें शामिल किया गया है।