- पं. धर्मेंद्र शास्त्री
भगवान श्री गणेश मंगल करने वाले हैं। वे विघ्न व बाधाओं का हरण करते हैं इसलिए विघ्नहर्ता कहे जाते हैं। शिव-पार्वती के पुत्र गणेश ज्ञान व बुद्धि के देवता हैं तो मातृ व पितृ भक्ति के पर्याय भी हैं। पूरे भारत में उन्हें प्रथम पूज्य देव का मान प्राप्त है। हर शुभ कार्य में श्री गणेश का वंदन सबसे पहले किया जाता है।भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दोपहर 12 बजे जन्में श्री गणेश को सभी देवताओं का सम्मान व शक्तियां प्राप्त हैं।
उन्होंने विचार किया कि एक छोटे से मूषक के साथ ब्रह्माण्ड की परिक्रमा नहीं हो सकती। ऐसी स्थिति में उन्होंने अपनी बुद्धिमता का परिचय देते हुए अपने माता-पिता शिव-पार्वती के चारों ओर परिक्रमा कर वहीं बैठ गए। जब अन्य देवता परिक्रमा कर आए तब उन्होंने कहा कि माता व पिता मूर्तिमान ब्रह्माण्ड हैं व उनमें सभी तीर्थों का वास है।
तब भगवान ब्रह्मा ने उनसे श्री गणेश से यह कार्य कराने को कहा। महर्षि वेदव्यास ने जब गणेशजी के सामने यह प्रस्ताव रखा तो उन्होंने इस शर्त पर इसे स्वीकार किया कि वे अपनी लेखनी को कहीं विराम नहीं देंगे। वेदव्यास ने यह शर्त मान ली। इस प्रकार भगवान गणेश ने पहले ग्रंथ जय संहिता को लिपिबद्ध किया जिसे महाभारत गंथ के नाम से जाना जाता है।