अनंत चतुर्दशी ज्योतिष की नजर में

भारत धार्मिक देश है। यहाँ धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ-हवन, पूजन, धार्मिक त्योहार को बहुत श्रद्धा एवं पूर्ण विश्वास, उत्साह के साथ मनाया जाता है।

इन्हीं धार्मिक त्योहारों में अनंत भगवान के पूजन का दिवस अनंत चतुर्दशी है, जो भाद्रपद शुक्ल की चतुर्दशी को मनाया जाता है। अनंत स्वयं भगवान कृष्ण का रूप है। इस व्रत को स्वयं कृष्ण ने युधिष्ठिर को करने को कहा था। नेमिषारण्य में पूर्ण समय में गंगा तट पर युधिष्ठिर ने जरासंघ के वध के लिए राजसूय यज्ञ किया था। उस यज्ञ में दुर्योधन का अपमान द्रोपदी द्वारा हुआ था।

  श्रीकृष्ण कहते हैं अनंत रूप मेरा ही रूप है। सूर्यादि ग्रह और यह आत्मा जो कहे जाते हैं पल-विपुल, दिन-रात, मास, ऋतु, वर्ष, युग- ये सब काल कहे जाते हैं। जो काल कहे जाते हैं वही अनंत कहा जाता है।      
उसी का बदला लेने के लिए छल से पांडवों को जुए में हारकर कौरवों ने वन में भेज दिया था। उस अवधि में दु:खी पांडवों के लिए युधिष्ठिर ने कृष्ण से उपाय पूछा था, तब कृष्णजी ने स्वयं अनंत पूजन का युधिष्ठिर से कहा था। तब युधिष्ठिर ने कृष्ण से पूछा था- श्रीकृष्णजी, ये अनंत कौन हैं? क्या शेषनाग हैं, क्या तक्षक सर्प है अथवा परमात्मा को कहते हैं।

श्रीकृष्ण कहते हैं अनंत रूप मेरा ही रूप है। सूर्यादि ग्रह और यह आत्मा जो कहे जाते हैं पल-विपुल, दिन-रात, मास, ऋतु, वर्ष, युग- ये सब काल कहे जाते हैं। जो काल कहे जाते हैं वही अनंत कहा जाता है। मैं वही कृष्ण हूँ और पृथ्‍वी का भार उतारने के लिए बार-बार अवतार लेता हूँ।

वैकुण्ठ, सूर्य, चंद्र, सर्वव्यापी ईश्वर तथा मध्य अंत कृष्ण, विष्णु हरि, शिव तथा सृष्टि जो नाश करने वाले विश्वरूप इत्यादि रूपों को मैंने अर्जुन के ज्ञान के लिए दिखलाया था।

श्री अनंत देव की प्रार्थना इन भावों से करो, अवश्य मनोकामना पूर्ण होगी।

त्वमादिदेव: पुरुष: पुराण
स्वत्वगस्य विश्वस्य परं विधानम्
वेन्तादि वेधं च परं धाम
त्वया ततं विश्वमन्तरूप।

आप ‍आदिदेव और सनातन पुरुष हैं। आप इस जगत के आश्रय और जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनंतरूप आपसे यह सब जगत व्याप्त अर्थात परिपूर्ण है।

वायुर्यमोऽग्निर्वरूण: शशांक:
प्रजापतिस्त्वं प्रपिताहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्व:
पुनश्च भूयोऽषि नमो नमस्ते।

आप वायु, यमराज, अग्नि, वरुण, चंद्रमा, प्रजा के स्वामी और ब्रह्मा के भी पिता हैं। आपके लिए हजारों बार नमस्कार है, नमस्कार है। आपके लिए फिर बारंबार नमस्कार है। हे अनंत सामर्थ्य वाले आपके लिए हर तरफ से नमस्कार है। क्योंकि अनंत पराक्रमशाली आप समस्त संसार को व्याप्त किए हुए हैं। उससे आप ही सर्वरूप हैं।

पितासि लोकस्य चराचरस्य
त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्।
न त्वत्समोऽस्यभ्यधिक: कुत्तोऽन्यो-
लोकत्रयेऽप्य‍प्रतिम प्रभाव।।

आप इस चराचर जगत के पिता और सबसे बड़े गुरु एवं अति पूज्यनीय हैं। हे अनुपम प्रभाव वाले तीनों लोकों में आपके समान कोई दूसरा नहीं है। अतएव हे प्रभो मैं शरीर से, मन से आपके चरणों में प्रणाम करता हूँ। आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिए प्रार्थना करता हूँ।

पिता जैसे पुत्र के, सखा जैसे सखा के और पति जैसे प्रियतमा पत्नी के अपराध सहन करते हैं। वैसे ही आप भी मेरे अपराध को सहन करने योग्य हैं।

इस प्रकार प्रभु से प्रार्थना करने से अवश्य प्रभु अनंत देव आपकी मनोकामना पूर्ण करेंगे। अनंत पूजा आदिकाल से चली आ रही है। सतयुग में सुमन्तनाम का ब्राह्मण था। उसने अपनी कन्या शीला का विवाह विधि-विधानपूर्वक कौडिल्य ऋषि के साथ कर दिया। शीला ने अनंत चतुर्दशी का पूजन कर कौडिल्य ऋषि के चौदह गाँठ वाला धागा (अनंत) बाँधा, परंतु धन के चूर में उस अज्ञानी कौडिल्य ने धागा आग में जला दिया। परिणामस्वरूप बर्बाद हो गया एवं कई कष्टों को उठाना पड़ा।

पूरे ब्रह्मांड में भटकने के बाद भी जब शांति एवं भगवान की शरण नहीं‍ मिली तो मूर्च्छित हो धरती पर गिर गया। होश आने पर प्रभु अनंत देव को मन से, वाचा से, हृदय से 'हे अनंत' कहकर बुलाया। स्वयं प्रभु कृष्ण चार भुजा स्वरूप शंख-चक्र धारण कर आ गए और आशीर्वाद देकर कौडिल्य को धन्य कर दिया। ऐसे दयालु हैं ये अनंत प्रभु।

क्योंकि स्वयं प्रभु ने गीता में कहा है-

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

संपूर्ण धर्मों को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्यागकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर।

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