भाषा- यहाँ पर सरल हिन्दी भाषा में भगवान श्री गणेश की लघु पूजन विधि दी जा रही है। अवधि- निम्नांकित विधि से पूजन करने में अनुमानित समय 25 मिनट लगेगा। जिन व्यक्तियों के पास समयाभाव है अथवा बड़ी पूजा करने की इच्छा नहीं है, संस्कृत का ज्ञान नहीं है, वे व्यक्ति इस विधि से लाभ उठा सकते हैं।
भाग-2 पूजन प्रारंभ दीपक पूजन स्वस्ति वाचन संकल्प विधि व निर्देशन- यहाँ पर आपको अपने देश, शहर, गौत्र का व अपना नाम बोलना है। जहाँ पर * चिह्न है उसका अर्थ नीचे बॉक्स में देखें। अपने दाहिने हाथ में जल लेकर उसमें थोड़े से अक्षत व नकद द्रव्य (सिक्का) रखकर यह संकल्प मंत्र बोला जाता है। संकल्प मंत्र पूरा बोलने के पश्चात उस जल को किसी पात्र में छोड़ दिया जाता है। मंत्र- 'ओम् विष्णु विष्णु विष्णु ब्रह्मा की वर्तमान आयु के द्वितीय परार्ध में श्री श्वेत नामक वाराह कल्प के वैवस्वत नामक मन्वन्तर के अट्ठाईसवें कलियुग के प्रथम चरण में जम्बू(अ)* नामक द्वीप के भरत(ब)* नामक खण्ड में भारत(स)* नामक देश में ...........(1)* नामक स्थान में वर्तमान प्रचलित विजय नाम संवत्सर में वर्षा ऋतु के शुभ भाद्रप्रद माह के शुभ शुक्ल पक्ष की शुभ चतुर्थी तिथि को हस्त नामक नक्षत्र में तुला नामक राशि में चंद्र सिंह नामक राशि में सूर्य वृषभ नामक राशि में देवगुरु बृहस्पति एवं शेष ग्रह यथा-यथा राशि में रहते हुए ..............(2)* नामक गौत्र में उत्पन्न ................(3)* नामक मैं ............(4)* नामक श्रीमन् महागणपति देवता की कृपाप्राप्ति एवं प्रसन्नतार्थ यथा उपलब्ध वस्तुओं द्वारा यह पूजन करता हूँ। (हाथ का जल छोड़ दें)
(अ)* (ब)* (स)* यदि भारत में पूजन किया जा रहा है तो उपरोक्त स्थान के नाम बोले जाएँ अन्यथा अपने देश का नाम बोला जाए। 1* अपने नगर/ग्राम का नाम यथा पूना, बम्बई, लंदन, न्यूयॉर्क आदि जिस शहर में पूजन कर रहे हो, उस शहर का नाम बोला जाए। 2* जिस परिवार में पैदा हुए हैं उस परिवार का गौत्र बोला जाए जैसे भारद्वाज, गौतम, अत्रि आदि। यदि गौत्र ज्ञात न हो तो 'अमुक गौत्र' ही बोल दिया जाए। 3* अपना नाम जैसे अशोक कुमार, राजीव आदि-आदि के साथ अपना उपनाम जोड़ें। 4* ब्राह्मण कुल में उत्पन्न शर्मा बोलते हैं, वैश्य कुल में उत्पन्न गुप्ता अहं बोलते हैं, क्षत्रिय कुल में वर्मा बोलते हैं एवं अन्य लोग दासो अहं बोलते हैं।
मंत्र- 'भगवान श्री पुण्डरीकाक्ष का नाम उच्चारण करने मात्र से पवित्र अथवा अपवित्र किसी भी अवस्था में स्थित मनुष्य भीतर एवं बाहर दोनों ही ओर से पवित्रता को प्राप्त कर लेता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे उक्त पवित्रता प्रदान करें। पुनः उक्त पवित्रता प्रदान करें। पुनः उक्त पवित्रता प्रदान करें।'
आरती विधि व निर्देशन- कपूर के साथ घी में डूबी हुई एक, तीन या इससे अधिक बत्तियाँ जलाकर आरती की जाती है।
मंत्र- 'हे प्रभो! केले के गर्भ से उत्पन्न यह कपूर जलाकर मैं इससे आपकी आरती करता हूँ। आप इसका अवलोकन कीजिए।' 'हे नाथ! आप मुझे मनवांछित वर प्रदान कीजिए।'
आरती :- जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पारवती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहै, मूसे की सवारी॥
जय गणेश.....जय गणेश...... अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया। बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश.....जय गणेश...... पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन को भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश.....जय गणेश...... जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पारवती, पिता महादेवा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। कर्पूर नीराजन आपको समर्पित है।