ईसर जी और गौरा की करें पूजा : गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ गौरी। शिव को लोकभाषा में ईसर भी कहते हैं। गणगौर माता पार्वती का गौर अर्थात श्वेत रूप है। उन्हें गौरी और महागौरी भी कहते हैं। अष्टमी के दिन इनकी पूजा होता है, लेकिन चैत्र नवरात्रि की तृतीया को उन्हें इसलिए पूजा जाता है क्योंकि राजस्थान की लोक परंपरा के अनुसार इस दिन माता की अपने मायके के यहां से विदाई हुई थी। मान्यता अनुसार माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। विदाई के दिन को ही गणगौर कहा जाता है। गणगौर की पूजा में गाए जाने वाले लोकगीत में इसी घटना का वर्णन होता है।
सुहागिनें व्रत धारण करने से पहले मिट्टी की गौरी जिसे रेणुका कहते हैं, की स्थापना करती है एवं उनका पूजन करती हैं। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो कुमारी और विवाहित बालिकाएं, नवविवाहिताएं प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं।
इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्रियों को सौभाग्य का वरदान दिया था। इसीलिए पौराणिक काल से ही इस व्रत पूजा का प्रचलन रहा है। इस दिन सुहागिनें देवी पार्वती और शिवजी की विशेष पूजा अर्चना करके पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना के साथ ही घर-परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं।